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पैकेजिंग रियायत से जूट मिलें मुश्किलें में
Date: 02 Mar 2015
Source: Business Standard Hindi
Reporter: Namrata Acharya
News ID: 4067
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खाद्यान्नों के भंडारण के लिए पैकेजिंग सामग्री खरीदने को लेकर विवाद ने जूट उद्योग को मुश्किलों में डाल दिया है। एक मंत्रालय ने खाद्यान्नों के भंडारण के लिए प्लास्टिक की बोरियों की अनुमति दी है, वहीं दूसरे मंत्रालय ने जूट की बोरियों में पैकेजिंग नियमों में किसी तरह के बदलाव से इनकार किया है। इस विवाद के बीच भारी स्टॉक पर बैठे जूट उद्योग फंस गया है और उसे अस्थायी श्रमिकों की छंटनी तक करनी पड़ रही है।

इस माह की शुरुआत में पंजाब सरकार ने केंद्रीय खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग से अनुरोध किया था कि उसे मौजूदा रबी सीजन के लिए गेहूं के भंडार के वास्ते 58000 गांठ प्लास्टिक की बोरियों की खरीदने की अनुमति दी जाए। इस साल पंजाब सरकार को उम्मीद है कि 168 लाख टन गेहूं की खरीद की जाएगी, जिनमें से करीब 125 लाख टन की खरीद राज्य सरकार की एजेंसियों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की ओर से की जाएगी। इसके अलावा, एफसीआई ने खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए 50 किलोग्राम वाले 11440 गांठ प्लास्टिक की बोरियां खरीदने की अनुरोध किया था। 18 फरवरी को खाद्य आपूर्ति मंत्रालय ने पंजाब सरकार और एफसीआई के अनुरोध को मंजूरी दे दी। हालांकि 23 फरवरी को केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्रालय ने खाद्य, नागरिक आपूर्ति मंत्रालय को लिखा कि वह पंजाब सरकार और एफसीआई को जूट की जगह प्लास्टिक की बोरियों को खरीदने की अनुमति देने से वह सहमत नहीं है।

जूट उद्योग की मुश्किलें 2012-13 से शुरू हुईं, जब तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने जेपीएमए (जूट पैकेजिंग मैटीरियल्स ऐक्ट) में संशोधन किया। चीनी और अन्य खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए इस कानून के तहत 100 फीसदी जूट की बोरियों के इस्तेमाल करने की अनिवार्यता है। लेकिन इस नियम को सरल कर खाद्यान्नों के लिए 90 फीसदी और चीनी के लिए 20 फीसदी आरक्षित कर दिया गया। इस बार पंजाब सरकार और एफसीआई ने गेहूं और खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए कुल 2 से 3 फीसदी ही आरक्षित किया जाए। हालांकि केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्री ने 17 फरवरी को जेपीएमए नियम में एक नया प्रावधान जोड़ दिया, जिसमें कहा गया कि अगर जूट उद्योग समय पर पैकेजिंग सामग्री की आूपर्ति करने में विफल रहती है तो गेहूं की पैकेजिंग के लिए 10 फीसदी की ढील दी जा सकती है।

इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन राघव गुप्ता ने कहा, 'यह संभव है कि खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के विभाग जेपीएमए कानून में हालिया किए गए बदलाव से वाकिफ न हो और यही वजह है कि भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। हालांकि अगर नियमों में ढील दी जाती है तो जूट उद्योग के समक्ष संकट खड़ा हो सकता है और यह एक गलत परंपरा की शुरुआत हो सकती है।' उल्लेखनीय है कि पंजाब सरकार पश्चिम बंगाल के मिलों से सबसे ज्यादा मात्रा में जूट की बोरियां खरीदती है। लेकिन जेपीएमए कानून में ढील के बाद से चीनी उद्योग से ऑर्डर में कमी आई है।

 
  

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