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News
रॉ शुगर एक्सपोर्ट पर सब्सिडी के लिए कैबिनेट की मंज़ूरी
Date:
20 Feb 2015
Source:
दैनिक भास्कर
Reporter:
Policy Team
News ID:
4042
Pdf:
Nlink:
नई दिल्ली।
संकट से जूझ रहे चीनी उद्योग को उबारने के लिए केंद्र सरकार ने रॉ शुगर निर्यात पर सब्सिडी जारी रखने का फैसला किया है। बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी
की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में चालू चीनी सीजन 2014-15 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए रॉ शुगर निर्यात पर सब्सिडी जारी रखने का निर्णय लिया गया। इस सीजन के दौरान प्रति टन 4000 हजार रुपये के हिसाब से रॉ शुगर पर एक्सपोर्ट सब्सिडी दी जाएगी। सब्सिडी का लाभ इस साल 14 लाख टन रॉ शुगर के निर्यात पर मिलेगा। इसलिए जो कंपनी चीनी का निर्यात पहले करेगी, उसे सब्सिडी में प्राथमिकता दी जाएगी।
रॉ शुगर निर्यात पर मिलने वाली सब्सिडी की शर्तों में ज्यादा बदलाव नहीं किया गया है। सिर्फ एक मामले में छूट दी गई है। अब अगर चीनी मिल के पास एल्कोहल उत्पादन की क्षमता है तो उसी सूरत में सब्सिडी का लाभ मिल सकता है जब मिल सरकारी तेल कंपनियों को एथनॉल आपूर्ति की पेशकश करे। गौरतलब है कि एथनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम के तहत चीनी मिलों को उनके सालाना एथनॉल उत्पादन का अधिकतम 25 फीसदी तेल कंपनियों को बेचना होता है। सरकार का दावा है कि रॉ शुगर के निर्यात को बढ़ावा मिलने से चीनी मिलों को किसानों के बकाया भुगतान करने में मदद मिलेगी।
चीनी मिलों को बढ़ाना होगा रॉ शुगर प्रोडक्शन- इस्मा
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन इस्मा के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने मनी भास्कर को बताया कि सरकार ने रॉ शुगर निर्यात पर सब्सिडी जारी रखने का ऐलान कर इंडस्ट्री के हित में एक अच्छा कदम उठाया है। पिछले साल फरवरी में यूपीए सरकार ने रॉ शुगर निर्यात पर सब्सिडी का ऐलान किया था, जिस मौजूदा गन्ना सीजन शुरू होने से पहले ही पुनर्विचार होना था। अब चीनी मिलों के सामने चालू सीजन के बाकी बचे एक-डेढ़ महीने में 14 लाख टन रॉ शुगर के उत्पादन की चुनौती रहेगी। मौजूदा वैश्विक व घरेलू कीमतों को देखते हुए भारत से रॉ शुगर का निर्यात सरकार से मिली सब्सिडी के साथ किफायती हो सकता है। इस्मा का अनुमान है कि देश में इस समय करीब 25 लाख टन चीनी का सरप्लस है इसलिए इंडस्ट्री को 10-15 लाख टन चीनी के लिए प्रोत्साहन की जरूरत पड़ेगी। किसानों के बकाया भुगतान के लिए चीनी मिलों के पास यही एकमात्र रास्ता है। अन्यथा गन्ने का बकाया भुगतान जो फिलहाल 12,300 करोड़ रुपये है, वह पिछले साल के 13 हजार करोड़ रुपये बकाया भुगतान के पार जा सकता है।
चार साल के निचले स्तर पर चीनी का दाम
देश में चीनी की कीमतें करीब चार साल के निचले स्तर पर हैं। पश्चिम बाजार (महाराष्ट्र) में चीनी S 30 क्वालिटी के भाव 2350 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गए हैं, जो पिछले कई वर्षों का निचला स्तर है। चीनी की कीमतों में गिरावट का मुख्य कारण मिलों पर गन्ना किसानों के भुगतान का दबाव है। साथ ही इस साल भी चीनी का उत्पादन मांग से ज्यादा होने की संभावना है जिसके चलते कीमतों पर दबाव देखने को मिल रहा है। इंडस्ट्री का मानना है कि सरकार अगर जल्द एक्सपोर्ट सब्सिडी पर फैसला नहीं लेती तो कीमतों में और गिरावट देखने को मिलती।
मिलों को हो रहा है
700
रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री लिमिटेड के एमडी
एम जी जोशी
के मुताबिक अभी शुगर मिल्स को 6 से 7 रुपए प्रति किलो का नुकसान हो रहा है। मिल्स की लागत 3200 रुपए प्रति क्विंटल की है। जबकि महाराष्ट्र में भाव 2350 रुपए प्रति क्विंटल का है। मिल्स गन्ने के निकलने वाले अन्य उत्पाद की बिक्री से कुछ रिकवरी कर लेती हैं जिसके चलते अभी मिलों को करीब 700 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। जोशी का यह भी कहना है कि चीनी के एक्सपोर्ट से भी फिलहाल मिलों को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी लगभग इसी भाव पर चीनी बिक रही है।
फैसले में हुई देरी
महाराष्ट्र में स्थित सहयाद्री सहकारी चीनी मिल्स के अध्यक्ष
बालासाहेब पाटिल
के मुताबिक चीनी निर्यात होने से देश में चीनी का स्टॉक घटेगा जिससे कीमतों को सहारा मिलेगा, लेकिन सरकार सब्सिडी की घोषणा में देरी की है। पिछले साल रॉ शुगर पर 3300 रुपए प्रति टन की सब्सिडी मिली थी जिसके कारण भारी मात्रा में निर्यात हुआ था। ऐसे में मिल्स को किसी भी भाव पर चीनी बेचनी पड़ रही है।
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