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चीनी उत्पादन भले घटे, दाम नहीं बढ़ेंगे
Date: 03 Jul 2019
Source: Business Standard
Reporter: Sanjeeb Mukherjee
News ID: 40409
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देश के बहुत से राज्यों में सूखे के कारण चीनी उत्पादन 2019-20 में घटकर 300 लाख टन से कम रहने का अनुमान है। यह तीन साल में सबसे कम उत्पादन होगा। हालांकि इससे चीनी की कीमतों में इतना इजाफा नहीं होगा कि वे 31 रुपये प्रति किलोग्राम की न्यूनतम बिक्री कीमत के पार निकल सकें।  इसकी वजह यह है कि पिछले वर्षों की बची हुई चीनी का भंडार बहुत अधिक है। सरकार चीनी सीजन 2019-20 में 50 लाख टन चीनी का ताजा बफर स्टॉक बनाने का कदम उठा रही है ताकि बाजार में उपलब्ध अतिरिक्त चीनी को सोखा जा सके। इस पर सरकार का खर्च करीब 2,100  करोड़ रुपये आएगा। लेकिन इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि यह कदम कारगर नहीं है। उनका कहना है कि अतिरिक्त उपलब्धता का एकमात्र समाधान यह है कि नवंबर, 2019 तक 70 लाख टन से अधिक चीनी का सब्सिडीयुक्त निर्यात किया जाए। 
 
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'इस समय मांग और आपूर्ति के गणित के हिसाब से चीनी की कीमत करीब 26 से 27 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए, लेकिन इस नियम के कारण चीनी 31 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे नहीं बेची जा सकती है। हम इस कीमत से ऊपर बेचने को बाध्य हैं। उत्पादन में अनुमानित गिरावट से मांग-आपूर्ति का गणित न्यूनतम कीमत के नजदीक पहुंचेगा, लेकिन उससे बहुत आगे नहीं।' केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने एक शोध रिपोर्ट में कहा कि आधिक्य की स्थिति से चीनी की घरेलू कीमतों पर दबाव रहने के आसार हैं। सबनवीस ने कहा, 'हमारा अनुमान है कि चीनी की कीमतें सीमित दायरे में रहेंगी या मामूली बढ़ेंगी। ये आगामी महीनों में औसतन 34 से 35 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में रहेंगी।' इस समय चीनी के औसत दाम 33 से 34 रुपये के बीच बनी हुई हैं। 
 
अधिकारियों ने कहा कि 1 अक्टूबर, 2019 से देश की चीनी मिलों के पास 145 लाख टन से अधिक स्टॉक होगा। यह किसी चीनी वर्ष की शुरुआत में पिछले वर्ष के बचे हुए सामान्य स्टॉक की तुलना में करीब तीन गुना और पिछले 9 वर्षों में सबसे अधिक होगा।  इसलिए अगर नवंबर तक अगले 3-4 महीनों में भारी निर्यात के लिए प्रोत्साहन नहीं दिए गए तो 2019-20 में चीनी उत्पादन में अनुमानित गिरावट के बावजूद इसके दाम न्यूनतम बिक्री कीमत से बहुत ऊपर नहीं जाएंगे। सरकार ने चीनी सीजन 2018-19 में 1,550 करोड़ रुपये खर्च कर 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक किया था। इस बफर स्टॉक की वैधता 30 जून को खत्म हो जाएगी। 
 
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'चीनी स्टॉक बहुत अधिक है, इसलिए अगर डब्ल्यूटीओ की अनुपालना करने वाला एक उचित निर्यात पैकेज नहीं तैयार किया गया तो मिलों के लिए किसानों को भुगतान करना मुश्किल होगा।'  उन्होंने कहा कि निर्यात के लिए प्रोत्साहन पैकेज की जल्द घोषणा होनी चाहिए। अन्यथा मिल वैश्विक बाजारों में भारतीय चीनी निर्यात करने का मौका गंवा देंगी। मिलों की मांग है कि सरकार 2019-20 में 70 लाख टन का निर्यात कोटा और एक उचित प्रोत्साहन पैकेज तैयार कर इसकी जल्द घोषणा करे। यह प्रोत्साहन पैकेज डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक होना चाहिए। सरकार ने 2018-19 में निर्यात कोटा 50 लाख टन तय किया था। 
 

अधिकारी ने कहा, 'भारत, थाईलैंड और कुछ अन्य देशों में उत्पादन घटने से वैश्विक चीनी बाजार में आपूर्ति करीब 40 लाख टन कम रहने के आसार हैं। इस वजह से नवंबर से भारतीय चीनी की मांग आएगी। अगर हम इस मौके को गंवा देते हैं तो निर्यात को बढ़ाना मुश्किल होगा।' उन्होंने कहा कि बेहतर तो यह होगा कि निर्यात प्रोत्साहन योजना अगले महीने तक आ जाए ताकि मिलों को निर्यात सौदे करने के लिए पर्याप्त समय मिले और वे नवंबर में भारी वैश्विक मांग आने पर उस समय निर्यात कर पाएं।               

 
  

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