रामविलास पासवान ने एक और कार्यकाल के लिए खाद्य, सार्वजनिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है। उन्हें चीनी उद्योग के सामने आने वाली उन समस्याओं से भी निपटना होगा जिन्हें उन्होंने एक साल पहले हल करने का प्रयास किया था। हालांकि इस बार उन्हें इन समस्याओं से अलग तरीके यानी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुरूप निपटना होगा।
एक साल पहले कई चरणों में की गई बड़े कार्यक्रम की घोषणा के बाद भी चीनी की अधिक उपलब्धता अब भी कायम है। यहां तक कि जिस कीमत पर मिलें चीनी बेचती हैं, उसे कृत्रिम रूप से बढ़ाया जा चुका है। सरकार न्यूनतम बिक्री मूल्य लेकर आई है। मिलें इससे कम कीमत पर बिक्री नहीं कर सकती हैं।
केंद्र द्वारा केवल एक साल के लिए जिस 30 लाख टन बफर स्टॉक की घोषणा की गई थी वह अवधि जून में समाप्त हो रही है। इस बफर स्टॉक के लिए सरकार ब्याज और बीमा लागत वहन करती है। मिलों को दिए गए 50 लाख टन के निर्यात लक्ष्य के साथ कई रियायतें और सब्सिडी जुड़ी हुई थी। सितंबर में सीजन खत्म होने पर इसमें 20 फीसदी या दस लाख टन तक की कमी होने का अनुमान है।
एक लाख करोड़ रुपये वाला घरेलू चीनी उद्योग अब नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी से मदद की उम्मीद लगा रहा है क्योंकि आने वाले 2019-20 चीनी सीजन में रिकॉर्ड 1.4 करोड़ टन से अधिक का पिछला बचा हुआ स्टॉक रहने की उम्मीद है जो देश की छह महीने की खपत से भी ज्यादा है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि भारत में इतना ज्यादा शुरुआती स्टॉक होना अनोखी बात है। हमें अगले सीजन की शुरुआत 1.4-1.45 करोड़ टन बची हुई चीनी से होने की उम्मीद है जो 6-7 महीने की घरेलू खपत की पूर्ति करेगी जबकि आदर्श स्थिति में बची हुई चीनी से आधे महीने की खपत पूरी होती है।
उन्होंने कहा कि अगले सीजन में सरकार से ऐसे सक्रिय समर्थन की जरूरत है जो विश्व व्यापार संगठन के अनुकूल होने के साथ-साथ सरल और लागू करने में आसान हो। पिछले सीजन में 2019 के लोकसभा चुनावों के समय केंद्र ने इस क्षेत्र की मदद के लिए आसान ऋण और निर्यात कोटा सहित कई प्रोत्साहनों की घोषणा की थी। सूत्रों के मुताबिक 50 लाख टन कोटे में से अब तक 30 लाख टन का निर्यात किया जा चुका है। चूंकि सरकार ने मिलों के हिसाब से कोटे की घोषणा की थी इसलिए चूक करने वाली मिलों को उत्पादन, परिवहन और बफर स्टॉक की सब्सिडी से वंचित कर दिया जाएगा।
बफर स्टॉक की सब्सिडी के विस्तार पर निर्णय लेने के अलावा, जिसे एक और साल के लिए बढ़ाना पड़ेगा, एक और ऐसा मसला है जिस पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है और वह है निर्यात कोटा पूरा न होना। यह लगभग तय है कि यह सीजन करीब 3.3 करोड़ टन उत्पादन के साथ समाप्त हो रहा है लेकिन अगले सीजन 2019-20 के दौरान उत्पादन में लगभग 10 प्रतिशत की तेज गिरावट नजर आएगी। ऐसा या तो खराब उपज की वजह से होगा या फिर गन्ने को एथनॉल के लिए इस्तेमाल करने के कारण।
गन्ने के बढ़ते बकाये से भी चीनी कंपनियों को नुकसान हो रहा है। वर्तमान में अखिल भारतीय स्तर पर किसानों का बकाया 25,000 करोड़ रुपये है जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश का बकाया ही लगभग 10,000 करोड़ रुपये या 40 प्रतिशत है। हाल ही में चीनी क्षेत्र ने दामों में प्रति टन 33,000-33,500 रुपये प्रति टन (उत्तर प्रदेश में एक्स-मिल दाम) का सुधार दिखाया है जबकि पिछले महीने दाम 31,000 रुपये प्रति टन थे।
इससे मिलों की परिचालन आय में सुधार हुआ है लेकिन इससे चीनी प्रचुरता की स्थिति का समाधान नहीं हुआ है। कीमतों में स्थिरता नहीं है क्योंकि बाजार जल्द ही कमजोर खपत वाले सीजन में प्रवेश करेगा।