चीनी उद्योग मुश्किल भरे दौर से गुजर रहा है और उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र की मिलों को उत्पादन लागत से 25 से 30 फीसदी के नुकसान पर चीनी बेचनी पड़ रही है। चीनी के मुख्य उत्पादक राज्यों में चीनी की कीमत 23 रुपये प्रति किलोग्राम से 26.5 रुपये प्रति किलोग्राम (एक्स फैक्टरी कीमत) है, जिसका मतलब है कि मिलों को 25 से 30 फीसदी का नुकसान हो रहा है। दरअसल मौजूदा समय में चीनी की उत्पादन लागत महाराष्ट्र में 34 रुपये प्रति किलोग्राम और उत्तर प्रदेश में 34.5 रुपये प्रति किलोग्राम है। उत्पादन लागत से कम भाव होने के कारण चीनी मिलों को पिछली कई तिमाहियों से नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके साथ ही गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी होने से भी उत्पादन लागत उच्च स्तर पर बनी हुई है। इसकी वजह से चीनी की एक्स फैक्टरी प्राप्तियां चार साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। पिछले एक माह में चीनी की एक्स फैक्टरी कीमत 1.25 से 1.50 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम हुई है। चालू पेराई सत्र के अक्टूबर में शुरू होने के बाद से चीनी की एक्स मिल कीमत 5 से 6 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम हुई है। उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक परिस्थिति काफी दयनीय है कि कुछ मिलें तो वित्तीय दबाव के कारण परिचालन तक शुरू नहीं कर पाईं। भारतीय शुगर मिल्स एसोसिएशन के उत्तर प्रदेश इकाई के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'आज की तारीख तक हमने 2014-15 सत्र के लिए गन्ना किसानों के बकाये का 63 फीसदी तक भुगतान कर दिया है और पिछले सत्र का भी करीब 97 फीसदी बकाया चुका दिया गया है। लेकिन अब स्थिति कठिन दिख रही है क्योंकि चीनी की कीमतों में तेजी से गिरावट आ रही है और सरकार से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही है।' उन्होंने कहा कि आधिकारिक तौर पर मिलें मार्च के पहले हफ्ते से पेराई बंद कर सकती हैं, लेकिन वित्तीय दबाव के कारण कुछ मिलें इससे पहले भी परिचालन बंद कर सकती हैं। एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'मौजूदा हालात में हमारे लिए केंद्र द्वारा गन्ने के लिए तय 200 रुपये प्रति क्विंटल उचित एवं लाभकारी मूल्य देना भी कठिन है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य 280 रुपये तय किया है।' उत्तर प्रदेश में इस बार पिछले साल के बराबर करीब 70 लाख टन गन्ने के पैदावार का अनुमान है, जबकि चीनी का उत्पादन 64 लाख टन रहने का अनुमान है। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि भारी घाटा होने के चलते अगले सत्र में पेरई शुरू करना भी बहुत कठिन होगा। मिलों के पास नकदी नहीं है और बैंक भी घाटे वाले चीनी क्षेत्र को कार्यशील पूंजी देने से परहेज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से कच्ची चीनी के निर्यात पर निर्णय नहीं लिए जाने से भी मिलों को नुकसान हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया करीब 12,300 करोड़ रुपये का है और फरवरी के अंत तक यह और बढ़ सकता है। पिछले साल मिलों पर 13,000 करोड़ रुपये का बकाया था। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का बकाया मार्च के अंत तक 9,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। महाराष्ट्र की बात करें तो 176 मिलों में से केवल 25 से 27 मिलें ही ऐसी हैं जो गन्ना किसानों को एफआरपी दे पा रही हैं। शेष मिलों पर करीब 1,500 करोड़ रुपये का बकाया है, जिनमें से ज्यादा सहकारी मिलें हैं।