चीनी के दाम लगातार गिरने की वजह से चीनी मिलों और कारोबारियों के लिए इसकी मिठास गायब होती जा रही है। अधिक उत्पादन से चीनी के दाम लगातार टूट रहे हैं। वायदा बाजार में चीनी 2,650 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई है, जबकि हाजिर बाजार में भाव 2,700 रुपये क्विंटल के आसपास आ गए हैं। चीनी मिलों के बढ़ते घाटे की वजह से बैंक भी इन्हें कर्ज देने से कन्नी काट रहे हैं, जिससे उनकी हालत पतली हो गई है। पिछले दो महीनों में चीनी की कीमतें करीब 150 रुपये प्रति क्विंटल घटी हैं। हाजिर बाजार में शुगर (एम) के भाव टूटकर 2,860 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं, जबकि शुगर (एस) के दाम गिरकर 2,700 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास आ गए हैं। हाजिर बाजार में कीमतें घटने और कमजोर मांग की वजह से वायदा बाजार में भी चीनी के दाम टूटे हैं। वायदा बाजार में चीनी 2,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। कीमतों में लगातार गिरावट की वजह अधिक उत्पादन और कमजोर विदेशी मांग बताई जा रही है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के आंकड़ों के मुताबिक इस साल चीनी का उत्पादन करीब 15 फीसदी ज्यादा हुआ है। 31 जनवरी तक देश में करीब 135 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले साल इस अवधि में 117 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस साल चीनी के दाम करीब 20 फीसदी गिर चुके हैं और ज्यादा उत्पादन से इसके दाम बढऩे के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। जिंस एजेंसियों की रिपोर्टों के मुताबिक इस साल देश में करीब 260 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है, जो खपत से करीब 25 लाख टन ज्यादा है। इसके अलावा करीब 75 लाख टन पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक है, जबकि पिछले साल यह स्टॉक 25 लाख टन था। वैश्विक स्तर पर भी चीनी का उत्पादन बेहतर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय चीनी दूसरे देशों के मुकाबले महंगी है, जिससे इसकी विदेशी मांग कम है। जिंस विशेषज्ञों का कहना है कि देश में अधिक उत्पादन, पुराने स्टॉक और सुस्त विदेशी मांग को देखते हुए इस साल चीनी के दामों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है और कीमत इस स्तर से ज्यादा नीचे भी जाने के आसार नहीं हैं। इस्मा के अध्यक्ष ए वेलायन के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में चीनी का औसत मूल्य सबसे कम रहा है। हालात इतने खराब हैं कि गन्ना किसानों को केंद्र सरकार द्वारा घोषित उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की दर पर भी भुगतान करना भी संभव नहीं हो पा रहा है। गन्ना किसान अपनी उपज की ज्यादा कीमत चाहते हैं, लेकिन चीनी की कीमतों में नरमी के चलते मिल मालिक ज्यादा दाम देने की हालत में नहीं हैं। चीनी उत्पादक प्रमुख राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिक सरकार से मदद की मांग कर रहे हैं।