इलाहाबाद हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद गन्ना किसानों को उनके बकाए का भुगतान नहीं करने पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। दस जिलों के डीएम को अवमानना का नोटिस जारी करते हुए उनसे स्पष्टीकरण तलब किया है। कोर्ट ने जिलाधिकारियों को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कि उनके आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया। अदालत द्वारा अंतिम तिथि निर्धारित कर देने के बावजूद किस प्रकार से अफसरों ने अपनी मर्जी से तारीख बढ़ा दी। राष्ट्रीय किसान मजदूर यूनियन द्वारा दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस सुनीत कुमार की खंडपीठ ने मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, महराजगंज, हापुड़, कासगंज, बहराइच, बदायूं और पीलीभीत के जिलाधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इनसे पूछा गया है कि क्यों न उन पर अवमानना की कार्रवाई की जाए। मजदूर यूनियन का पक्ष रख रहे किसान नेता वीएम सिंह का कहना था कि हाईकोर्ट ने पांच सितंबर 2014 के आदेश में साफ कर दिया था कि किसानों को हर हाल में 31 अक्तूबर 2014 तक पूरा भुगतान कर दिया जाए। इसके बावजूद 10 जिलों में 12 चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 724.24 करोड़ रुपये बकाया है। कुल 119 में से 107 चीनी मिलों ने भुगतान कर दिया है। मात्र 12 मिलें ऐसी हैं जो भुगतान नहीं कर रही हैं। मवाना सुगर मिल का 165 करोड़ रुपये और मलिकपुर मिल का 140 करोड़ रुपये बकाया है। मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय ने कहा कि कुछ मिलों ने किसानों से समझौता कर लिया है कि वह 31 मार्च 2015 तक भुगतान कर सकती हैं। वीएम सिंह ने इसका विरोध करते हुए कहा कि चंद किसान नेताओं और मिल मालिकों के बीच डीएम के प्रतिनिधि की मौजूदगी में समझौता हुआ है। आदेश न मानने वाले जिलाधिकारियों का कहना था कि कोर्ट के बुलाने पर वह आएंगे। अधिकारियों ने अपनी मर्जी से भुगतान की तारीख बढ़ाकर 20 नवंबर कर दी। खंडपीठ का कहना था कि उनके आदेश के बाद अपनी मर्जी से तारीख नहीं बढ़ाई जा सकती है। किसान भूखे मर रहे और अफसर कर रहे विदेश दौरा गन्ना किसानों के मामले में सुनवाई के दौरान किसान नेता वीएम सिंह ने अदालत के सामने भावनात्मक पक्ष रखते हुए कहा कि भुगतान नहीं मिलने से किसान भुखमरी के कगार पर हैं मगर केन कमिश्नर और दूसरे अफसर विदेशों का दौरा कर रहे हैं। मानिकपुर के किसानों का बुरा हाल है। उनके बच्चों की पढ़ाई छूट गई है। आंदोलन करने पर पुलिस ने किसानों को जेल में डाल दिया। खंडपीठ ने सरकारी अधिकारियों के रवैये पर नाखुशी जाहिर करते हुए 25 फरवरी तक स्पष्टीकरण मांगा है।