नई दिल्ली। उत्पादन में वृद्धि और कीमतों में लगातार गिरावट के रुख से चीनी उद्योग की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। चीनी मिलों का घाटा पिछले कुछ सालों में तीन गुना से भी अधिक हो गया है।
वित्तीय रूप से बदहाल मिलों को कर्ज देने से बैंकों तक ने हाथ खड़े कर दिए हैं। चीनी मिल मालिकों ने केंद्र सरकार से इस बार दीर्घकालिक मदद की गुहार लगाई है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अध्यक्ष ए वेलायन ने कहा कि पिछले तीन सालों में चीनी का औसत मूल्य सबसे कम है। हालात इतने खराब हैं कि गन्ना किसानों को केंद्र सरकार के घोषित उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की दर पर भी भुगतान करना संभव नहीं हो पा रहा है।
पिछले साल मार्च अप्रैल तक 13 हजार करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य बकाया था। यह एरियर इस बार जनवरी तक ही 11 हजार करोड़ रुपये हो गया है।
पिछले पांच सीजन से चीनी का उत्पादन मांग के मुकाबले बहुत अधिक हो रहा है। चालू सीजन के शुरू होते समय कैरीओवर स्टॉक 75 लाख टन था, जो पिछले सीजन के मुकाबले 25 लाख टन अधिक है।
चालू सीजन (अक्टूबर, 2014 से सितंबर, 2015) में चीनी का उत्पादन 2.60 करोड़ टन होने का अनुमान है। इससे घरेलू बाजार में चीनी की कीमत में पिछले तीन महीने के भीतर तीन रुपये प्रति किलो की कमी दर्ज की गई है।
घरेलू बाजार के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चीनी की भारी आपूर्ति होने से निर्यात की संभावनाएं न के बराबर हैं। भारत में चीनी की उत्पादन लागत विश्व में सर्वाधिक है। लागत से कम मूल्य पर चीनी बेचने पर घाटे में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
एक सवाल के जवाब में इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि चीनी मिलों को उत्पादन पर नियंत्रण रखने का कोई अधिकार नहीं है। किसानों के समूचे गन्ने की पेराई करनी जरूरी है।
इस्मा के मुताबिक मिलों पर बैंक कर्ज का बोझ पांच सालों के भीतर 11,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 36,000 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। इसी के चलते बैंकों ने कई मिलों को अब कर्ज देने से मना कर दिया है।
चीनी उद्योग ने सरकार से मांग की है कि इस कर्ज पर लगने वाले ब्याज को कम से कम तीन से पांच वर्षों तक के लिए स्थगित कर दिया जाए।