चीनी की कीमतों में आई गिरावट की वजह से उत्तर प्रदेश में शुगर मिल्स गन्ना खरीदने से पीछे हट रही हैं। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। बैंक भी चीनी मिलों को कर्ज देने में हिचक रहे हैं। प्रति हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन बढ़ने और इससे बनाई जाने वाली चीनी की मात्रा में बढ़ोतरी होने की उम्मीद के बावजूद मिलों के रुख को देखते हुए 2014-15 में चीनी का उत्पादन पिछले साल के बराबर रहने की आशंका है। पिछले साल 65 लाख टन चीनी उत्पादन हुआ था।
चीनी उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश का दूसरा बड़ा राज्य है। मौजूदा सत्र में राज्य में अभी तक 20 लाख टन चीनी उत्पादन हो चुका है। हर साल देश में औसतन 2.5 करोड़ टन चीनी का उत्पादन होता है, जिसमें अकेले महाराष्ट्र में 90 लाख टन से अधिक चीनी बनाई जाती है। वहीं, उत्तर प्रदेश में करीब 65 लाख टन चीनी का उत्पादन होता है।
उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी अलोक रंजन ने कहा, 'राज्य में मिलें चल रही हैं, लेकिन गन्ने की खरीदारी सुस्त है। इसकी सबसे बड़ी वजह चीनी मिलों के भुगतान करने की क्षमता में आई गिरावट है।' रंजन के मुताबिक, गन्ना किसानों को भुगतान किए जाने वाले एरियर की रकम में गिरावट आई है, लेकिन इसके बावजूद मवाना शुगर, मोदी शुगर मिल्स, सिंभावली शुगर, यादू शुगर और बजाज हिंदुस्तान शुगर को अभी भी पिछले सीजन में खरीदे गए गन्ना का भुगतान करना है।
पिछले साल मिलों पर गन्ना किसानों की भारी मात्रा में बकाया रकम और स्टेट फिक्स्ड प्राइस को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और चीनी मिलों के बीच ठन गई थी। चीनी मिल किसानों का बकाया देने में असफल रही हैं और वे सरकार से गन्ना की कीमतों को चीनी की कीमतों के साथ जोड़े जाने की मांग कर रही हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ना किसानों को चीनी की कीमतों के मुताबिक गन्ने का भुगतान किया जाता है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें भी सरकार से दोनों राज्यों का मॉडल लागू किए जाने की मांग कर रही हैं।
राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया कि 16 जनवरी तक चीनी मिलों पर किसानों का 790 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया था। मवाना पर 336 करोड़ रुपये का बकाया था जबकि मोदी मिल्स को किसानों को 236 करोड़ रुपये का भुगतान करना था। सिंभावली शुगर्स पर किसानों का 141 करोड़ रुपये, बजाज पर 12.5 करोड़ रुपये जबकि राणा शुगर पर 4,6 करोड़ रुपये की देनदारी थी। चीनी मिल मालिकों का कहना है कि चीनी की कीमतों में आई गिरावट की वजह से गन्ने की खरीदारी में कमी आई है। लखनऊ में इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने बताया, 'मौजूदा कीमत पर बैंक हमें लोन देने को तैयार नहीं है। बैंक हमसे पर्सनल गारंटी और एडिशनल कोलैटरल की मांग कर रहे हैं। हमने राज्य सरकार से इस मामले में मदद मांगी है।'