भले ही कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में हाल की गिरावट से वैश्विक बाजारों में इस बात को लेकर चिंता बढ़ी हो कि कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने से इस क्षेत्र में नए निवेश पर असर पड़ेगा। लेकिन ऐसी कम से कम चार वजह हैं, जो यह संकेत देती हैं कि यह गिरावट आगे बरकरार नहीं रहेगी। तेल की कीमतों में वर्तमान नरमी की मुख्य वजह वैश्विक बाजारों में अति आपूर्ति और चीन सहित प्रमुख आयातक देशों की मांग में गिरावट आना है। गौरतलब है कि अमेरिका में शेल तेल के बढ़ते उत्पादन और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह ओपेक के अपनी बाजार हिस्सेदारी नहीं घटने देने पर अडिग रहने से वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल की आपूर्ति ज्यादा बनी हुई है। लेकिन आपूर्ति और मांग का असंतुलन तेल कीमतों के नए स्तर 50 डॉलर प्रति बैरल को तर्कसंगत साबित नहीं कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछली दो तिमाहियों (कैलेंडर वर्ष 2014 की तीसरी एवं चौथी तिमाही) में मांग एवं आपूर्ति का असंतुलन करीब 5 लाख बैरल प्रतिदिन रहा है, जो इससे पहले की तिमाहियों से ज्यादा अलग नहीं है। मांग और आपूर्ति में असंतुलन वर्ष 2014 की दूसरी तिमाही में ज्यादा था और वर्ष 2012 की पहली और दूसरी तिमाही में यह और अधिक था। इक्विटी रिसर्च कंपनी एडलवाइस ने एक रिपोर्ट में कहा है, 'दरअसल 5 लाख बैरल का अति उत्पादन (कुल का करीब 0.5 फीसदी) ओपेक के अपने कोटे के मुकाबले अति उत्पादन के बराबर है। फिर भी पिछली दो तिमाहियों में कच्चा तेल बुरी तरह गिरा है और जब पहले वैश्विक बाजार में अति आपूर्ति थी, उससे इसकी कोई तुलना नहीं है।' इसने कहा है कि इसकी वजह पता लगाना बड़ा मुश्किल है कि 5 या 10 लाख बैरल प्रतिदिन (कुल उत्पादन का करीब 1 फीसदी) की अति आपूर्ति से कीमतों में 50 फीसदी गिरावट आ सकती है। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि भविष्य में अति आपूर्ति के अनुमानों पर बाजार की अत्यधिक प्रतिक्रिया से डर पैदा हुआ है। कच्चे तेल की वर्तमान निम्न कीमतों पर यह अनुमान गलत साबित होने के आसार हैं। आईईए ने वर्ष 2015 में मांग और आपूर्ति का अंतुलन बढ़कर 15-20 लाख बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान जताया है। एजेंसी ने आगे अंसतुलन और बढऩे की बात कही थी। रिपोर्ट में कहा गया है, 'लेकिन अगर सऊदी हस्तक्षेप नहीं करता है तो क्या 15-20 लाख बैरल की अति आपूर्ति का अनुमान सही साबित हो पाएगा।' तेल की कीमतें वर्तमान स्तरों पर कुछ समय ही रहने की एक अन्य वजह यह है कि वर्तमान कीमतें उत्पादन लागत से भी कम हैं। अनुमानों में कहा गया है कि 60 डॉलर प्रति बैरल पर बहुत सी अमेरिकी शेल तेल परियोजनाओं के लिए उत्पादन फायदेमंद नहीं होगा। इसके अलावा कम कीमतों से नकदी की किल्लत झेल रहे तेल उत्पादक देश और ज्यादा अस्थिर हो जाएंगे, जिससे आपूर्ति बाधित होने की आशंकाएं हैं। बड़े उत्पादकों में रूस तेल एवं गैस उत्पादन पर बहुत अधिक निर्भर है। यहां के सरकारी बजट में तेल से आमदनी का 45 फीसदी हिस्सा है। अगर कच्चे तेल के दाम औसतन 60 डॉलर प्रति बैरल रहे तो अगले साल रूस की अर्थव्यवस्था 4.5 फीसदी सिकुडऩे के आसार हैं। इसके अलावा इस बात की चिंताएं बढ़ रही हैं कि कच्चे तेल की कीमतों के धराशायी होने से वेनेजुएला दिवालिया घोषित हो सकता है। वेनेजुएला भी विश्व का एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है।