चालू चीनी सीजन की पहली तिमाही के दौरान देश में उत्पादन 27 फीसदी बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि जल्द पेराई सीजन खत्म कर अपना परिचालन खर्च बचाने के लिए मिलों ने परिचालन क्षमता बढ़ाई है। इस उद्योग की शीर्ष संस्था भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में अक्टूबर से 31 दिसंबर तक देश का चीनी उत्पादन 74.6 लाख टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 58.6 लाख टन था। इस सीजन में पेराई देरी से शुरू होने के बावजूद चीनी उत्पादन बढ़ा है। आमतौर पर गन्ने की पेराई अक्टूबर में शुरू होती है। लेकिन गन्ने की कीमतें तय होने और मिलों द्वारा किसानों को बकाये के भुगतान में देरी की वजह से मिलों ने इस सीजन में पेराई देरी से शुरू की। उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा, 'देशभर में लगभग सभी मिलें 100 फीसदी क्षमता पर चल रही हैं। इससे चालू वर्ष में पेराई सीजन जल्द खत्म होगा।' 31 दिसंबर, 2014 तक 481 चीनी मिलें चल रही थीं, जबकि पिछले साल इस समय तक 485 मिलें चालू थीं। महाराष्ट्र में 31 दिसंबर, 2014 तक 171 चालू मिलों ने 32.8 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जबकि पिछले साल इस समय तक चालू 155 मिलों ने कुल 10.4 लाख टन का उत्पादन किया था। चीनी सीजन 2012-13 में महाराष्ट्र में 158 चीनी मिलें चल रही थीं और इन्होंने 31 दिसंबर तक 28.7 लाख टन का उत्पादन किया था। उत्तर प्रदेश में 31 दिसंबर 2014 तक चालू 117 मिलों का कुल उत्पादन 17.2 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल 119 मिलों ने 11.2 लाख टन का उत्पादन किया था। इस साल इस राज्य में चीनी रिकवरी ज्यादा 9.25 फीसदी रही है, जो पिछले साल 8.75 फीसदी थी। इस्मा के निदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'ज्यादा उत्पादन का यह मतलब नहीं है कि पूरे सीजन में यह रुझान जारी रहेगा। हमने पेराई सीजन में 250-255 लाख टन उत्पादन का अनुमान बरकरार रखा है। यह पिछले साल के उत्पादन 244 लाख टन से करीब 10 लाख टन ज्यादा है।' कर्नाटक सरकार और चीनी मिलों के बीच सहमति कर्नाटक में किसानों को गन्ने की बकाया राशि के भुगतान पर संकट खत्म होने की संभावना है। हालांकि यह अस्थायी समाधान है। शनिवार को चीनी मिलों के साथ लंबी चर्चा के बाद राज्य सरकार ने मिलों की मदद करने पर सहमति जताई है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक सरकार ने कहा है कि अगर मिलें 20 जनवरी, 2015 से पहले किसानों को 100 रुपये प्रति टन का भुगतान करती हैं तो सरकार भी किसानों को 100 रुपये प्रति टन की मदद देगी। इसका मतलब है कि किसानों को पेराई सीजन 2013-14 के बकाये 400 रुपये प्रति टन में से 200 रुपये मिल जाएंगे।