जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्पादन अधिक होने व निर्यात मांग में कमी की वजह से चीनी उद्योग का संकट बढ़ जाता है। इसके लिए चीनी उद्योग ने केंद्र सरकार से वित्तीय मदद के साथ कई और सहूलियतें मांगी थी। केंद्र ने उसे हर संभव मदद मदद मुहैया कराई। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने गन्ने का पूरा भुगतान नहीं किया। इससे किसानों की परेशानी बढ़ी है। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने यह जानकारी राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूछे सवालों के जवाब में दी।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से चीनी उद्योग को आकर्षक राहत पैकेज की घोषणा की गई। गन्ना किसानों के बढ़ते बकाया को चुकाने के लिए चीनी उद्योग ने केंद्र सरकार से कई तरह की सहूलियतें मांगी थी। उसकी मांग थी कि 2014-15 के दौरान चीनी आयात शुल्क की दर को बढ़ाकर 40 फीसद कर दिया जाए। चीनी निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए कई और प्रस्ताव रखे थे।
अन्य मांगों में चीनी का रणनीतिक स्टॉक बनाने व पेट्रोल में एथनॉल का मिश्रण पांच से बढ़ाकर 10 फीसद करना शामिल है। उनकी ओर से एथनॉल खरीद का मूल्य निर्धारित करने व चीनी की जगह एथनॉल के उत्पादन पर जोर देने जैसी नीतियां बनाने की भी मांग की गई। उद्योग की प्रमुख मांग है कि गन्ने के एफआरपी (उचित व लाभकारी मूल्य) से अधिक एसएपी (राज्य समर्थित मूल्य) घोषित करने वाले राज्य अतिरिक्त मूल्य का भुगतान खुद करें।
पासवान ने कहा कि केंद्र ने पहले ही चीनी पर आयात शुल्क 15 से बढ़ाकर 25 फीसद कर दिया। चीनी का रणनीतिक स्टॉक बनाने की दिशा में सरकार ने पहल की। तेल कंपनियां पहले ही एथनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचने पर सहमत हो गईं। लेकिन एथनॉल के मूल्य निर्धारण को लेकर तेल कंपनियों के साथ ही समझौता हो सकता है। एफएआरपी व एसएपी के अंतर को सूबों के वहन करने का मामला राज्यों का अपना विषय है।
केंद्र का इस बारे में कुछ कहना उचित नहीं होगा। चीनी निर्यात पर प्रोत्साहन देने का मामला फिलहाल विचाराधीन है।