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चीनी मिलों की भी फिक्र करे कोई
Date: 15 Sep 2014
Source: नव भारत टाइम्स
Reporter: डी डी पाण्डेय
News ID: 3604
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उत्तर प्रदेश के गंगा और यमुना का दिआरा। यहीं से शुरू होती है हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब और इसमें मिठास घोलने का काम करता है गन्ना, जो यहां के किसानों की एक नकदी फसल है। इसके सहारे वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं और घर-परिवार से जुड़े खर्चे उठाते हैं। इसका आधार चीनी उद्योग है। इसी चीनी उद्योग पर नजर दौड़ाई जाए तो अहसास होता है कि इन किसानों के पांव के नीचे की जमीन कितनी भुरभुरी हो गई है।

अन्य उद्योगों की तरह चीनी उद्योग में भी उतार-चढ़ाव के दौर आते रहते हैं। पर एक दिन यह उद्योग ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगा कि बैंक भी कर्ज देने से इनकार करने लगेंगे और नकदी की किल्लत हो जाएगी, इसकी तो शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

दोनों तरफ मजबूरियां
गन्ने की कीमत का भुगतान समय पर न मिलने से किसानों की परेशानियां किस कदर बढ़ जाती हैं, यह कहानी का एक पक्ष है। लेकिन इसी कहानी का दूसरा पक्ष यह है कि समय से अदायगी न कर पाने के पीछे मिलों की कुछ भयानक मजबूरियां भी हैं। नतीजा कुल मिलाकर यह है कि कहीं किसानों ने मिलों के दफ्तरों पर ताले जड़ दिए हैं तो कहीं मिलों ने पहले ही आगामी पेराई सत्र में पेराई न करने का नोटिस दे दिया है। मिल और किसान दोनों इस दुष्चक्र में इस तरह फंसे हैं कि निकलने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही।

उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में बिहार की सीमा पर स्थित देवरिया जिले के प्रतापपुर कस्बे में एशिया की पहली चीनी मिल 1903 में स्थापित हुई। यह चीनी मिल कहने को तो यूपी में है, लेकिन बिहार का भी गन्ना यहां काफी मात्रा में आता है। लगातार निजी क्षेत्र के हाथों में रहना इसके चालू हालत में रहने का प्रमुख कारण बताया जाता है। एक समय देवरिया जनपद में कुल 14 चीनी मिलें थीं, मगर आज निजी क्षेत्र में मात्र प्रतापपुर मिल ही चल रही है।

इस राज्य में निजी चीनी मिलों का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है। 2004-05 में उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार की शुगर प्रमोशन पॉलिसी के चलते निजी क्षेत्र में तमाम चीनी मिलों की स्थापना हुई। इस पहल को उस समय आघात लगा, जब चुनाव में जाने से पहले सरकार ने बिना किसी तार्किक फार्मूले के राज्य समर्थित गन्ना मूल्य में अप्रत्याशित बढ़ोतरी कर दी। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। इसके बाद आई बीएसपी सरकार के कार्यकाल में भी उतने ही अतार्किक ढंग से एक तरफ गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाता रहा, दूसरी तरफ चीनी के दाम घटते रहे। इससे उत्साह के साथ नई-नई मिलें लगाने वाले निजी क्षेत्र की कमर ही टूट गई।

राज्य समर्थित गन्ने के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी के चलते आज स्थिति यह हो गई है कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक की चीनी मिलों के मुकाबले बाजारों में उत्तर प्रदेश की मिलों की चीनी ठहर ही नहीं पा रही। आंकड़ों की बात करें तो 2004-05 में प्रदेश में निजी क्षेत्र की 53, कार्पोरेशन की 22 और सहकारी क्षेत्र की 28 चीनी मिलें चालू हालत में थीं। 2013-14 में निजी क्षेत्र की 95 चीनी मिलें चालू हालत में हैं, मगर कार्पोरेशन की मात्र 1 और सहकारी क्षेत्र की 23 चीनी मिलें गन्ने की पेराई कर रही हैं।

किसी भी चीनी मिल के बंद होने का आसपास के पूरे इलाके पर क्या असर होता है, इसका एक उदाहरण है प्रदेश के बस्ती जिले का मुंडेरवा कस्बा। एक समय यहां एक चीनी मिल थी। जब तक मिल चालू हालत में रही, तब तक यहां का बाजार दूर दूर तक मशहूर था। दिन-रात यह कस्बा गुलजार रहता था। लेकिन चीनी मिल की बंदी के बाद इस कस्बे ने अपनी रौनक ही खो दी। मिल चलाने को लेकर आंदोलन भी हुए। पर, लाख चाहने के बावजूद यह मिल एक बार बंद हुई तो दोबारा चालू नहीं हो पाई है।

साफ है कि चीनी मिलों का बंद होना आसपास के इलाके की पूरी आबादी को प्रभावित करता है। बीते साल अखिलेश सरकार ने चीनी मिलों के संकट को देखते हुए उन्हें राहत देने वाली कुछ घोषणाएं कीं, पर वे नाकाफी साबित हुईं। मिलें तो चल गईं, लेकिन गन्ना मूल्य का भुगतान आज भी अटका पड़ा है।

बरकरार है चुप्पी
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें किसानों की समस्याओं का अंदाजा है तो चीनी मिलों की दुश्वारियां भी भली-भांति पता हैं। लेकिन वे बात सिर्फ किसान के दर्द की करते हैं, चीनी मिलों की दिक्कतें बयान करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। इन लोगों की हिचक के पीछे जो वजहें हैं, वही राज्य सरकार को उपयुक्त पहल करके चीनी मिलों के रास्ते की बाधाएं दूर करने से रोक रही हैं। नतीजा यह है कि मिलों के सिर पर बंदी की तलवार लटक रही है। हालांकि सभी जानते हैं कि अगर राज्य की चीनी मिलें बंद हुईं तो इनके हजारों मजदूरों के अलावा लगभग 60 लाख किसानों का भी जीवन सीधे तौर पर प्रभावित होगा।
             

 
  

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