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अब मिलों को चुकाना पड़ेगा बकाया
Date: 16 Feb 2019
Source: Business Standard
Reporter: Virendra Singh Rawat
News ID: 35991
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चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत (एमएसपी) दो रुपये बढ़ाकर 31 रुपये प्रति किलोग्राम किए जाने से घरेलू चीनी क्षेत्र पर मध्य अवधि में कोई सकारात्मक असर नहीं दिखने के आसार हैं। यह क्षेत्र वैश्विक स्तर पर चीनी की अति आपूर्ति और बढ़ते स्टॉक की समस्या से जूझ रहा है। केंद्र सरकार के कदम से निजी चीनी मिलों पर किसानों के बकाया का भुगतान करने का दबाव बनेगा। अब थोक बाजार कीमत के लिए 31 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत (एक्स-मिल कीमत) एक बेंचमार्क बन गई है। 

यह चुनाव का अहम साल है। लोक सभा चुनाव महज कुछ सप्ताह दूर रह गए हैं। एमएसपी में सात फीसदी बढ़ोतरी के रूप में मिलों को मुहैया कराई गई राहत से नरेंद्र मोदी सरकार काफी सहज स्थिति में आएगी। इससे मोदी सरकार के स्व-घोषित किसान हितैषी एजेंडे को सहारा मिलेगा, जिसका नमूना  2019-20 के अंतरिम केंद्रीय बजट में भी कृषि क्षेत्र को उदार वित्तीय मदद के रूप में भी देखने को मिला है। 

हालांकि न्यूनतम बिक्री कीमत में बढ़ोतरी से मिलों की आमदनी में सुधार आएगा। लेकिन न्यूनतम बिक्री कीमत उत्पादन की औसत लागत से नीचे बनी हुई है। निजी मिल मालिकों का कहना है कि उत्पादन की औसत लागत करीब 34 रुपये प्रति किलोग्राम है। मिलों पर 2018-19 के पेराई सीजन का बकाया करीब 22,000 करोड़ रुपये है। 

हालांकि चीनी और गन्ने के उपोत्पाद जैसे खोई, एथनॉल, सह-बिजली उत्पादन से मिलने वाली कीमत किसानों का बकाया चुकाने के लिए पर्याप्त है। इन उपोत्पादों से मिलों को करीब 15 फीसदी आमदनी प्राप्त होती है। केयर रेटिंग्स के डिप्टी जनरल मैनेजर (कॉरपोरेट रेटिंग) गौरव दीक्षित ने कहा कि मिलों को करीब 6,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होने का अनुमान है। इससे बकाया चुकाने के रुझान में कुछ तेजी आएगी। लेकिन चीनी क्षेत्र का मध्य अवधि का परिदृश्य नकारात्मक बना हुआ है क्योंकि चीनी का उत्पादन काफी अधिक रहेगा और उससे आगे अति आपूर्ति और बढ़ेगी।  उन्होंने कहा, 'हाल में बकाये को लेकर किसानों में आक्रोश दिखा है। इस बढ़ोतरी से मिलों को किसानों का भगुतान करने के लिए कुछ अतिरिक्त नकदी मिलेगी और अगले 2-3 महीनों के दौरान कीमतों में गिरावट नहीं आना सुनिश्चित होगा।'

उत्तर प्रदेश 

इस समय कुल बकाये में करीब 10,000 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश में हैं। के एम शुगर मिल्स के चेयरमैन एल के झुंझुनवाला ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'इस बढ़ोतरी से हमारी कार्यशील पूंजी की जरूरत में कुछ राहत मिलेगी। दरअसल इस बढ़ोतरी से बड़े समूहों को छोटी और हमारी जैसी एकल इकाइयों को फायदा मिलेगा।' उत्तर प्रदेश में एक बड़ी चीनी उत्पादक के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस कदम से मिलें मार्जिन कमाने की स्थिति में आ जाएंगी। इससे उन्हें बकाये का भुगतान करने में मदद मिलेगी। 

महाराष्ट्र 

उत्तर प्रदेश के बाद देश में दूसरे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में भी गन्ना किसानों के बकाये में भारी बढ़ोतरी हुई और मिलें भुगतान को लेकर इच्छुक भी नहीं थीं। हालांकि राज्य के चीनी आयुक्त के रिकवरी नोटिस जारी करना शुरू करने के बाद मिलें भुगतान करने के लिए आगे आई हैं और कहा जा रहा है कि पिछले दो सप्ताह के दौरान मोटी राशि का भुगतान किया गया है। असल मुद्दा कम मांग है और मिलें सरकार द्वारा तय मासिक बिक्री कोटे जितनी बिक्री नहीं कर पा रही हैं। 

निर्यात 

सरकार ने अक्टूबर, 2018 से सितंबर, 2019 तक के चीनी सीजन में उद्योग के लिए 50 लाख टन चीनी का निर्यात करना अनिवार्य किया है। लॉजिस्टिक कंपनी डॉ. अमीन कंट्रोलर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक 6 फरवरी तक 6.7 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ है। करीब 4.3 लाख टन चीनी मिलों से बाहर जा चुकी है, लेकिन यह निर्यात के विभिन्न चरणों में है। इसे भी शामिल करते हैं तो कुल निर्यात करीब 11 लाख टन के आंकड़े पर पहुंचता है। पिछले महीने से निर्यात में तेजी आई है।

 

 
  

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