सरकार ने चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में प्रति किलो 2 रुपये की बढ़ोतरी करने की आज घोषणा की। जून 2018 में सरकार ने चीनी मिलों की तरफ से बेची जाने वाली चीनी का न्यूनतम भाव 29 रुपये प्रति किलो तय किया था। इस फैसले से चीनी मिलों को करीब 6,000 करोड़ रुपये का लाभ होने की उम्मीद है। बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी का यह फैसला चीनी मिलों के मौजूदा भंडार एवं भावी उत्पादन दोनों के लिए बेंचमार्क होगा। हालांकि बिक्री मूल्य में सात फीसदी की बढ़ोतरी चीनी मिलों की अपेक्षा से कम ही है। मिलों को गन्ना किसानों के बढ़ते बकाये के भुगतान के लिए अधिक राहत की उम्मीद थी। मौजूदा सत्र (अक्टूबर 2018-सितंबर 2019) में 3.07 करोड़ टन उत्पादन होने का अनुमान है। विश्लेषकों के मुताबिक चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 22,000 करोड़ रुपये बकाया है।
चीनी उद्योग लंबे समय से बिक्री मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहा था। दरअसल पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के भाव कमजोर होने के बावजूद मिलें अपना निर्यात बढ़ा नहीं पा रही थीं। सरकार ने चीनी उद्योग को 50 लाख टन निर्यात की अनुमति दी हुई है लेकिन इस सत्र में इसके 35 लाख टन तक ही सीमित रह जाने के आसार दिख रहे हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि चीनी की कीमत में प्रति किलो 2 रुपये की बढ़ोतरी से 200 लाख टन चीनी के भंडार और बाकी पेराई सत्र में होने वाले 100 लाख टन उत्पादन पर करीब 6,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। इससे चीनी मिलों को बड़ी राहत मिलेगी और वे इससे से किसानों का बकाया चुका सकेंगी।
कई मिलों और उनके संगठनों ने पहले ही खरीदारों को सतर्क कर दिया है कि अगर एमएसपी में बढ़ोतरी की जाती है तो मिलें नई कीमत पर ही बिक्री करेंगी। वे अनुबंध की कीमत पर बिक्री नहीं करेंगी। ऑल इंडिया शुगर ट्रेड एसोसिएशन के चेयरमैन प्रफुल्ल विठलानी ने कहा कि नई कीमत से शुगर कंपनियों को फायदा मिलने की संभावना है। हालांकि उन्होंने निर्यात के 50 लाख टन से कम रहने की आशंका पर चिंता भी जताई? उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में आठ फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है। अभी कीमत कम है जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कमी की स्थिति को देखते हुए वाजिब नहीं है। भारत ब्राजील के बाद चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
सरकार ने पिछले साल जून में चीन का 30 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने के लिए अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि सरकार प्रति किलो 29 रुपये का भाव देगी। उद्योग को उम्मीद है कि नई कीमतों के मुताबिक बफर स्टॉक की अधिसूचना में भी संशोधन किया जाएगा। कई मिल मालिकों का कहना है कि बफर स्टॉक के लिए खरीद 34-35 रुपये प्रति किलो की उत्पादन लागत पर की जानी चाहिए। हालांकि अगर सब्सिडी का पैमाना बढ़ाकर 31 रुपये कर दिया जाता है तो अतिरिक्त सब्सिडी बोझ के कम ही रहने की संभावना है।
इस बीच महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में एक सहकारी चीनी मिल ने राज्य में गन्ने के रस से सीधे ईंधन ग्रेड के एथनॉल का उत्पादन करने की पहल की है। केंद्र ने पिछले साल जुलाई में चीनी मिलों को गन्ने के रस अथवा बी-शीरे से सीधे एथनॉल बनाने की अनुमति दी है।