देश की चीनी मिलों ने गन्ने से एथनॉल उत्पादन की खातिर अद्यतन के लिए 6,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। इसके अलावा इंडियन ऑयल और सनफ्लैग भी एथनॉल उत्पादन के लिए नई इकाइयों में 2,500 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर रही हैं। ये वे आंकड़े हैं जिनकी घोषणा की जा चुकी है तथा कई और निजी चीनी मिलों तथा सहकारी समितियों द्वारा चीनी के अधिक उत्पादन के मसले पर ध्यान दिया जागा। गन्ने की मूल्य शृंखला में विविधता लाकर एक लाख करोड़ रुपये की घरेलू चीनी अर्थव्यवस्था को बाजार की अस्थिरता से बचाने के संबंध में हो रहे कोलाहल के बीच यह कदम उठाया जा रहा है।
केयर रेटिंग्स के डिप्टी मैनेजर (कॉरपोरेट रेटिंग) गौरव दीक्षित के अनुसार चीनी के साथ-साथ एथनॉल उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार सहकारी चीनी मिलों के अद्यतन की खातिर 100 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। चीनी मिलें चीनी के शीर्ष उत्पादक राज्यों - महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में नए एथनॉल क्षमता विस्तार में 40 प्रतिशत और 30 प्रतिशत निवेश करने वाली हैं। जहां एक ओर महाराष्ट्र की मिलों द्वारा 2,250 करोड़ रुपये का निवेश करने की संभावना है, वहीं उत्तर प्रदेश की मिलें 1,500 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय करेंगी। इस तरह इन दोनों राज्यों का कुल व्यय 3,750 करोड़ रुपये होगा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में त्रिवेणी, धामपुर, बलरामपुर और द्वारिकेश से संबंधित मिलों की एथनॉल उत्पादन की नई क्षमता सामूहिक रूप से लगभग 1,200 किलो लीटर प्रतिदिन रहने का अनुमान है।
फिलहाल पेट्रोल के साथ 4-5 प्रतिशत एथनॉल का मिश्रिण किया जाता है जबकि सरकार का लक्ष्य 2022 तक जैविक ईंधन के साथ 10 प्रतिशत मिश्रण करना है। इसके बावजूद यह ब्राजील में 25 प्रतिशत अनिवार्य एथनॉल मिश्रण से कम है। 10 प्रतिशत मिश्रण भी भारतीय चीनी मिलों के विशाल आर्थिक अवसरों को दर्शाता है।
पेट्रोल में मिलाने के लिए तेल विपणन कंपनियों को मिलों द्वारा की गई कुल एथनॉल आपूर्ति 2015-16 में बढ़कर 1.11 अरब लीटर हो गई जबकि 2013-14 में यह 38 करोड़ लीटर थी। 2017-18 के दौरान कुल एथनॉल आपूर्ति 1.40 अरब लीटर रही।
केंद्र को उम्मीद है कि 2018-19 में एथनॉल मिश्रण दोगुना होकर आठ प्रतिशत हो जाएगा। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने चीनी उद्योग को चावल की भूसी जैसे अन्य कृषि अवशेषों से भी एथनॉल उत्पादन पर विचार करने का सुझाव दिया है। केंद्र को कच्चे तेल और द्रवित प्राकृतिक गैस का आयात करने के लिए 8-10 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा का बोझ वहन करना पड़ता है। चीनी के आधिक्य, कम आमदनी के साथ-साथ गन्ने के दाम, निर्यात बाजार में कमी और कार्यशील पूंजी की तंगी जैसे कारणों से चीनी क्षेत्र को बढ़ते बकाये के दुष्चक्र का सामना करना पड़ रहा है।
चीनी की कठोर परिस्थितियों और नकारात्मक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए सितंबर 2018 में केंद्र ने चीनी उत्पादन के आधिक्य में कमी और तेल आयात में कटौती के वास्ते पेट्रोल में मिलाने के लिए सीधे गन्ने के रस से उत्पादित एथनॉल के दामों में 25 प्रतिशत का इजाफा मंजूर किया था। एथनॉल क्षमता स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार को लगभग 200 चीनी मिलों से आवेदन मिले थे। इनमें से 114 परियोजनाओं को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इससे मौजूदा एथनॉल क्षमता में करीब 25 प्रतिशत का इजाफा होगा।
इस बीच उत्तर प्रदेश में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) भी गोरखपुर में 800 करोड़ रुपये के निवेश से एक नया एथनॉल संयंत्र स्थापित कर रही है। राज्य सरकार ने एथनॉल मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए एथनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री पर दोहरी कराधान नीति को भी समाप्त कर दिया है। इसके अलावा आदित्यनाथ सरकार ने पिछले साल सीतापुर, हापुड़, मेरठ, बरेली और मुजफ्फरनगर जिलों में 1,700 करोड़ रुपये के छह जैव ईंधन निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। सबसे बड़ा संयंत्र सनलाइट फ्यूल्स द्वारा सीतापुर में स्थापित किया जाएगा जिसकी लागत 1,550 करोड़ रुपये होगी।