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धीमा चीनी निर्यात बन रहा सिरदर्द
Date: 11 Jan 2019
Source: Business Standard
Reporter: Rajesh Bhayani
News ID: 35885
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दिसंबर में चीनी की विदेश जानी वाली खेपों में मामूली इजाफा हुआ है और सभी संकेत यही इशारा कर रहे हैं कि बाजार का परिदृश्य निर्यात के अनुकूल नहीं है और निकट भविष्य में भी कोई सुधार नहीं दिख रहा है। ये हालात ऐसे समय में सामने आ रहे हैं कि जब घरेलू स्टॉक कम करने के लिए मिलों पर अधिक निर्यात करने का दबाव है। विभिन्न जिंसों की समीक्षा करने वाली अमेरिका स्थित एजेंसी डॉ. अमीन कंट्रोलरर्स से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार निर्यात के लिए 5 जनवरी तक मिलों से कुल 7,26,000 टन चीनी जारी की गई जिसमें से 3,83,000 टन चीनी की वास्तविक खेप भेजी गई जबकि बाकी प्रक्रिया में है। अब तक का निर्यात केंद्र सरकार द्वारा मौजूदा चीनी सीजन (अक्टूबर 2018 से सितंबर 2019) के लिए निर्धारित 50 लाख टन के निर्यात लक्ष्य से कम रहा है। सरकार ने प्रोत्साहन की घोषणा के दौरान इसे तय किया था।
 
महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक ने सहकारी चीनी मिलों की एक निर्यात बाधा का रास्ता साफ कर दिया है और केंद्र से मिलने वाली निर्यात सब्सिडी की एवज में राज्य की मिलों को अंतरिम ऋण देने का फैसला किया है। इससे बैंक राज्य में करीब 100 मिलों द्वारा निर्यात के लिए बड़ी मात्रा में गिरवी रखा गया चीनी स्टॉक जारी कर सकेंगे। अलबत्ता वास्तविक निर्यात बाजार की परिस्थितियों और निर्यात में नुकसान की उस मात्रा पर निर्भर करेगा जिसे मिलें वहन कर सकती हैं। मिलें घरेलू बिक्री से 29 रुपये प्रति किलोग्राम वसूल सकती हैं। यह दर अधिकतम बिक्री कोटा से निर्धारित की गई है। मौजूदा विनिमय दर और वैश्विक दामों पर 18-19 रुपये की आमदनी हो रही है। सब्सिडी के बाद भी मिलों को नुकसान उठाना पड़ता है।
 
अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ के चेयरमैन प्रफुल्ल विठलानी कहते हैं कि निर्यात कोटा कुल उत्पादन का 15 प्रतिशत है। मिलों को किसी भी उस कीमत पर स्टॉक में कटौती करने पर ध्यान देना चाहिए जिस पर वे शेष 85 प्रतिशत चीनी से कमाई बचाकर निर्यात कर सकती हों। वे बताते हैं कि सब्सिडी देने के लिए हमेशा सरकार की एक सीमा होगी और इसलिए कोई रास्ता निकालना होगा। तीन कारणों से बाजार की परिस्थितियां निर्यात के अनुकूल नहीं हैं। पहला, सरकार द्वारा निर्यात लक्ष्य की घोषणा के बाद डॉलर के मुकाबले रुपये में चार प्रतिशत तक की मजबूती आई है। दूसरा, कच्चे तेल के दामों में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है जिसने तेल में मिश्रण के लिए एथनॉल के वास्ते गन्ने के अधिक इस्तेमाल की आर्थिक संभावना को कम कर दिया है। तीसरा, चीनी के दाम शीर्ष स्तर से 15-20 प्रतिशत कम होने के बावजूद निर्यात संभव नहीं होना।
 
चूंकि यही सब काफी नहीं था इसलिए पिछले सोमवार सरकार ने बफर स्टॉक की शर्तों में संशोधन कर दिया और कहा कि मार्च और जून तिमाहियों की सब्सिडी की अदायगी के लिए मिलों को 2018-19 के सीजन के लिए सरकार के आदेशों / निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन कराना होगा। इसका अर्थ यह है कि अगर मिलें दिए गए कोटे का निर्यात करने में विफल रहती हैं तो उन्हें बफर सब्सिडी नहीं मिलेगी।
 
  

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