अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के आधिक्य के साथ-साथ निर्यात बाजार के सीमित होने और घरेलू कारणों के परिणामस्वरूप 2018-19 के पेराई सीजन के बीच गन्ना बकाया बढ़ गया है। पिछले पेराई सीजन 2017-18 के बकाये समेत दो प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बकाया राशि 6,500 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। वार्षिक उत्पादन में इन दोनों का योगदान 50 प्रतिशत से अधिक रहता है। अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ (एआईएसटीए) के चेयरमैन प्रफुल्ल विठलानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि जहां एक ओरअक्टूबर से चीनी के ताजा उत्पादन के कारण बकाया इक_ा होना एक सामयिक घटना है, वहीं दूसरी ओर निर्यात बाजार पहले जताई गई उम्मीद की अपेक्षा कम रहा है।
दो प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं भारत और ब्राजील द्वारा लगातार अधिक आपूर्ति के कारण चीनी का वायदा सूचकांक कैलेंडर वर्ष 2018 को एक दशक के निचले स्तर पर विदा कर रहा है। इस वजह से वैश्विक चीनी बाजार की अवधारणा सुस्त बनी हुई है। इस बीच एआईएसटीए के मुख्य कार्याधिकारी आरपी भागरिया ने खासतौर पर महाराष्ट्र का निर्यात बाजार कम होने का दावा किया है जिसकी वजह शॉर्ट मार्जिन के नियम थे। शॉर्ट मार्जिन वह स्थिति होती है कि जब चीनी के दाम बैंकों द्वारा मिलों को दिए गए कर्ज की भरपाई करने में विफल रहते हैं। इसलिए चीनी की वास्तविक बिक्री शुरू होने से पहले मिलों द्वारा बैंकों को इस घाटे का भुगतान करना पड़ता है। किसी भी चूककर्ता का ऋण खाता 90 दिनों के बाद फंसे हुए कर्ज के रूप में चिह्नित कर दिया जाता है और फिर वह ऋण लेने के लिए अयोग्य हो सकता है। भागरिया ने कहा कि शॉर्ट मार्जिन का मसला हमारे चीनी निर्यात को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि चीन से उम्मीद की जा रही है कि वह अगले कुछ हफ्तों में अपने मौजूदा सीजन के कोटे की घोषणा कर देगा जिससे स्थिति आसान हो जाएगी। चीन के पास 40-50 लाख टन कच्ची चीनी का बड़ा आयात बाजार है। बांग्लादेश, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों को भी भारतीय चीनी का निर्यात किया जाता है।