अनिवार्य निर्यात के जरिए गन्ना किसानों को राहत देने की कोशिश को नाकाम करने वाली चीनी मिलों को सबक सिखाने के लिए केंद्र सरकार ने तय किया है कि वह निर्यात नहीं करने वाली चीनी मिलों को अब बफर स्टॉक बनाने के लिए सब्सिडी नहीं मुहैया कराएगी। मौजूदा चीनी (अक्तूबर 2018-सितंबर 2019) सत्र में चीनी मिलों के लिए सालाना 50 लाख टन निर्यात का लक्ष्य तय किया गया है।
उपभोक्ता एवं खाद्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेश के मुताबिक अनिवार्य निर्यात में असफल रही चीनी मिलों को सरकार द्वारा बफर स्टॉक पर सब्सिडी नहीं मुहैया कराई जाएगी। गत वर्ष चीनी की गिरती कीमतों को थामने के लिए सरकार ने 30 लाख टन बफर स्टॉक बनाने का फैसला लिया था। मंत्रिमंडल ने एक वर्ष के लिए 30 लाख टन बफर स्टॉक पर 11.75 अरब रुपये के प्रावधान को मंजूरी दी थी। लेकिन अब सरकार ने चीनी भंडारण पर सब्सिडी देने के लिए अनिवार्य निर्यात की शर्त रख दी है। ट्रांसपोर्टेशन सब्सिडी के बावजूद यूपी की मिलें पीछे निर्यात के लिए प्रोत्साहन दिए जाने के बावजूद चीनी मिलों ने अक्तूबर-दिसंबर, 2018 की तिमाही में महज छह लाख टन चीनी निर्यात का अनुबंध किया है और करीब 1.79 लाख टन चीनी निर्यात किया है। इसके अलावा दिसंबर 2018 को समाप्त होने वाली तिमाही में लदाई के लिए विभिन्न बंदरगाहों पर लगभग 80,000 टन चीनी जमा है।
इस प्रकार अक्तूबर-दिसंबर, 2018 तिमाही का कुल निर्यात मात्र 2.6 लाख टन बैठता है, जबकि तिमाही रूप से औसत लक्ष्य 12.5 लाख टन का है। हाल ही में सरकार ने इस मामले में मिलो को चेतावनी भी दी थी। निर्यात में सबसे कमजोर यूपी की चीनी मिलें रही हैं जिन्हें सरकार निर्यात पर ट्रांसपोर्टेशन सब्सिडी दे रही थी। इसके बावजूद सूबे की मिलें दूसरे देश चीनी भेजने का लक्ष्य नहीं पूरा कर सकीं।
मई में गन्ना किसानों का बकाया 37,700 करोड़ रुपये था। ऐसे में एक चौथाई बकाया अभी शेष है जो सरकार की तमाम कोशिशों और उपायों के बावजूद चुकाया नहीं जा सका। उल्लेखनीय है कि बकाए के मद्देनजर ही केंद्रीय कैबिनेट ने चीनी मिलों पर किसानों के भारी बकाया की राशि के मद्देनजर प्रति टन 55 रूपये की आर्थिक सहायता मुहैया कराने को अनुमति दी थी। गौरतलब है कि पिछले सीजन में सर्वाधिक बकाया उत्तर प्रदेश के किसानों का था। इसके बाद कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के किसानों का बकाया सर्वाधिक था।