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एथनॉल में आड़े आ रही क्षमता की कमी
Date: 30 Oct 2018
Source: Business Standard
Reporter: दिलीप कुमार झा
News ID: 35675
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हरित ईंधन उत्पादन की स्थापित क्षमता की कमी के कारण इस साल भारत चीनी का केवल पांच लाख टन हिस्सा ही एथनॉल उत्पादन में इस्तेमाल कर पाएगा। इसकी वजह यह है कि कंपनियां एथनॉल उत्पादन क्षमता में निवेश की इच्छुक नहीं हैं क्योंकि सरकार की एक साल की प्रोत्साहन अवधि छोटी है। चीनी के स्थान पर एथनॉल उत्पादन करने की संभावित मात्रा सरकार के अनुमान का केवल एक-चौथाई भाग है। कुछ महीने पहले प्रोत्साहन कार्यक्रम की घोषणा के समय यह मात्रा 20 लाख टन रहने का पूर्वानुमान जताया गया था। 
 
इस प्रकार अगर यह बात सच साबित होती है तो चीनी स्थानापन्न करने की इतनी कम मात्रा किसानों और मध्यस्थों के साथ-साथ सरकार के लिए भी शर्मनाक होगी। सरकार विभिन्न प्रोत्साहन नीतियों के जरिये चीनी के आधिक्य से छुटकारा पाने के तमाम प्रयास कर रही है। इस साल सितंबर में सरकार ने तेल विपणन करने वाली कंपनियों (ओएमसी) द्वारा एथनॉल खरीद के दामों में करीब 25 प्रतिशत तक का इजाफा किया था। इस कदम के जरिये सरकार का उद्देश्य यह था कि चालू पेराई सीजन यानी अक्टूबर 2018-2019 के दौरान मिलें 20 लाख टन मात्रा का सफलतापूर्वक स्थानापन्न कर सकें। इस तरह सरकार द्वारा विभिन्न प्रोत्साहन दिए जाने के बावजूद इस साल चीनी के आधिक्य की समस्या हल होने के आसार नहीं है।
 
आज यहां अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ (एआईएसटीए) और महाराष्ट्र राज्य सहकारी कारखाना संघ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित संगोष्ठी से इतर श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड के वाइस चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल मात्र पांच लाख टन चीनी के बराबर गन्ने के रस का ही अतिरिक्त एथनॉल उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकेगा है। वर्तमान में भारत करीब 1.03 करोड़ टन के पिछले बचे हुए स्टॉक और नए सीजन (इस महीने से शुरू) के 3.2 करोड़ टन उत्पादन के कारण  चीनी के भारी आधिक्य से जूझ रहा है जबकि देश की वार्षिक खपत 2.5 करोड़ टन है। इसलिए सरकार इस आधिक्य को कम करने के लिए चीनी मिलों को अपनी सभी संभव सहायता उपलब्ध कराना चाहती है। इससे अंतत: मिलों को किसानों का गन्ना बकाया चुकाने में मदद मिलेगी।
 
कुछ साल पहले सरकार ने पेट्रोल के साथ एथनॉल मिश्रण की नीति बनाई थी। इस अनिवार्य मिश्रण लक्ष्य का 10 प्रतिशत हासिल करने के लिए तेल विपणन कंपनियों को चीनी मिलों से 2.330 अरब लीटर एथनॉल खरीदने की आवश्यकता है जो सालाना अधिकतम 1.330 अरब लीटर की आपूर्ति करने में सक्षम रही हैं। चतुर्वेदी ने कहा कि एथनॉल उत्पादन में ताजा निवेश करने में सबसे बड़ी बाधा प्रोत्साहन नीति की अवधि छोटी होना है। सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी केवल एक वर्ष के लिए थी। कोई कंपनी नई अतिरिक्त क्षमता में इतना अधिक निवेश क्यों करेगी। इसलिए सरकारी सब्सिडी की न्यूनतम अवधि तीन साल के लिए होनी चाहिए। इससे निवेशकों को भविष्य में बेहतर दामों के लिए दीर्घकालिक निवेश नीति की योजना बनाने में मदद मिलेगी। एआईएसटीए के अध्यक्ष प्रफुल्ल विठलानी ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इस नीति की घोषणा के बाद नई क्षमता की योजना अगले साल यानी 2019-20 में ही आएगी।
 
नैशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे का मानना ​​है कि वैश्विक चीनी आधिक्य धीरे-धीरे कम हो रहा है। कुछ महीने पहले के 37 लाख टन के स्तर से चीनी आधिक्य घटकर बाद में 10 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया था। अब चालू सीजन में बिना आधिक्य वाला परिदृश्य बन रहा है। इसलिए निर्यात करने के लिए हमारे पास मार्च 2019 तक का समय है। चूंकि हम घरेलू आपूर्ति-मांग परिदृश्य को देखने के बाद हर साल मार्च के बाद निर्यात की योजना बनाया करते थे इसलिए इस साल हमें देर हो जाएगी। 
 
  

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