रिफाइन चीनी का आमतौर पर निर्यात करने वाला भारत पहली बार विश्व बाजार में कच्ची चीनी के उत्पादन से प्रतिस्पर्धी देशों को मात देने की तैयारी में है। सरकारी मदद और डॉलर के मुकाबले रूपये की घटती कीमतों से भी घरेलू चीनी उद्योग के लिए निर्यात फायदे का सौदा होगा। अंतरराष्ट्रीय चीनी बाजार में कीमतें बढ़ गई हैं, जिसका लाभ उठाने को लेकर निर्यातक देशों में होड़ लगनी तय है।
चीनी उत्पादन में पहले पायदान वाले देश ब्राजील और थाईलैंड से भारत की कड़ी प्रतिस्पर्धा है, लेकिन भारतीय चीनी उद्योग ने अपनी निर्यात नीति में संशोधन करते हुए कच्ची चीनी के उत्पादन करने का मन बनाया है। चीनी की मांग वाले ज्यादातर देशों में रिफाइनरी लगा ली गई है, जहां रिफाइन सफेद चीनी की जगह कच्ची चीनी की आयात मांग है। भारत के लिए पड़ोसी देश इंडोनेशिया, चीन, इरान और सूडान जैसे देशों में कच्ची चीनी को रिफाइन करने के लिए रिफाइनरी लगा दी गई है।
घरेलू चीनी उद्योग को नगदी संकट से उबारने के लिए सरकार ने दो राहत पैकेज घोषित करने के साथ आयात शुल्क की दरों में दोगुना की वृद्धि कर दी गई है। जबकि निर्यात से सभी तरह के प्रतिबंध हटा लिये गये हैं। इसे लेकर कई देशों ने विश्व व्यापार संगठन में अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं।
भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में कुल 25 लाख टन चीनी की खपत होती है, जबकि उसका उत्पादन केवल 75 हजार टन होता है। बाकी चीनी का आयात किया जाता है। लेकिन आयातित चीनी रिफाइन की जगह कच्ची चीनी होती है। इसके लिए बांग्लादेश में कई सारी रिफाइनरियां स्थापित की गई हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा का कहना है कि घरेलू चीनी मिलों ने भी अपना पैंतरा बदल लिया है। 20 अक्टूबर से कच्ची चीनी का उत्पादन शुरु हो जाएगा। मिडिल ईस्ट के देशों में जहां चीनी की मांग रहती है, उन देशों में रिफाइनरी लगा ली गई है। इन देशों के लिए कच्ची चीनी का निर्यात किया जाएगा। इसकी तैयारियां की जा रही हैं।
बीते पेराई सीजन में सरकार ने मिलों को 20 लाख टन रिफाइन चीनी के निर्यात का लक्ष्य दिया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम होने की वजह से मात्र साढ़े चार लाख टन चीनी का ही निर्यात किया जा सका। चालू पेराई सीजन में 50 लाख टन चीनी के निर्यात का लक्ष्य है, जिसे पूरा करने की तैयारियां जोरों पर है। चालू सीजन में भी चीनी का उत्पादन 3.50 करोड़ टन होने का अनुमान है। चीनी के इस भारी उत्पादन के अनुमान से घरेलू बाजार पहले से ही नीचे चल रहा है, लेकिन विश्व बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार से संभावनाएं बनी हैं।