जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गन्ना पेराई सीजन की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन बीते सीजन का गन्ना बकाया चुकता नहीं हो सका है। इसे लेकर चालू पेराई सीजन में मिलों के संचालन को लेकर संशय बरकरार है। केंद्र के साथ राज्य सरकार ने अपने स्तर से कई उपाय किये हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के किसानों का बकाया 8220 करोड़ रुपये से नीचे नहीं खिसक रहा है। चीनी उद्योग पर सरकार का दबाव है कि पेराई सीजन की शुरुआत बकाया भुगतान के साथ ही करें।
राहत पैकेज की घोषणा के बाद भी स्थिति वहीं
केंद्र सरकार ने इसके लिए कई कदम भी उठाये हैं। पिछले एक साल के दौरान चीनी उद्योग को राहत देने के उद्देश्य से चीनी आयात शुल्क को दोगुना कर दिया गया है। जबकि निर्यात शुल्क से प्रतिबंध पूरी तरह से हटा दिया गया है। सरकार ने दो राहत पैकेज की घोषणा भी की है, जिससे चीनी का बफर स्टॉक का गठन करने और मिलों को रियायती दर पर कर्ज मुहैया कराया जा सके। इससे मिलों को नगदी संकट से राहत मिलने की संभावना है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को राज्यस्तरीय कई और रियायतें दी गई हैं।
भुगतान की धीमी रफ्तार से परेशानी
केंद्र सरकार ने इसके लिए चीनी मिलों के लिए 4500 करोड़ रुपये के रियायती ऋण का बंदोबस्त किया है, जिसका उपयोग मिलें गन्ना बकाया भुगतान में ही करेंगी। लेकिन, जमीनी स्तर पर किसानों के हाथ फिलहाल कुछ नहीं पहुंचा है। अगस्त के आखिरी सप्ताह में गन्ना बकाया जहां 8969 करोड़ रुपये था, वह अक्तूबर के पहले सप्ताह में घटकर 8220 करोड़ है। भुगतान की रफ्तार बहुत कम है। इस धीमी रफ्तार को लेकर गन्ना किसानों के साथ सरकार की चिंताएं घट नहीं रही हैं।
किसानों ने किया आंदोलन उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का बकाया सबसे अधिक है। इसे लेकर किसानों के एक गुट ने आंदोलन का रास्ता भी अख्तियार किया और वे दिल्ली तक चढ़ आये थे। उनकी नाराजगी की मूल वजह भी गन्ना बकाया ही थी। लेकिन, सरकार के समझाने और मिलों को धन मुहैया कराने का भरोसा दिलाने के बाद वे वापस चले गये। समस्या ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। अब बढ़ेंगी समस्याएं
चीनी उद्योग के समक्ष अब अगला संकट आ खड़ा हुआ है। पिछला भुगतान किये बगैर मिलों में पेराई शुरु करने में समस्या का पैदा होना स्वाभाविक है। इसे लेकर गन्ना किसानों के साथ सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं।