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गन्ना किसानों के जीवन में मिठास नहीं
Date: 05 Oct 2018
Source: नव भारत टाइम्स
Reporter: के. सी. त्यागी
News ID: 34624
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कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में अपना गन्ना चीनी मिल के लिए ले जाता एक किसान
मिलों पर किसानों की बकाया राशि चुकाने के नाम पर होने वाली सरकारी घोषणाओं का प्रत्यक्ष लाभ प्राय: मिल मालिकों को ही होता है

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) की अगुआई में पिछले दिनों उत्तर भारत के किसानों ने हरिद्वार से दिल्ली तक ‘किसान क्रांति यात्रा’ निकाली। देश के और इलाकों के किसान भी समय-समय पर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरते रहे हैं। दरअसल खेती-किसानी से जुड़े तबकों में रोष है कि सरकार की प्राथमिकता में उद्योग-धंधे तो हैं लेकिन किसान दूर-दूर तक नहीं हैं। आजादी के सात दशकों के बाद भी यदि 

भारत के किसान आत्महत्या और विद्रोह कर रहे हैं तो जाहिर है कि इसके पीछे कई बड़ी समस्याएं हैं, जिन्हें दूर किए बगैर देश के विकास की कल्पना भी व्यर्थ है। 

• भुगतान का चक्र
अभी गन्ने की पेराई शुरू होनी है। गन्ना उत्पादकों को सरकार से उत्साहजनक फेयर रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) और समयबद्ध भुगतान आदि से जुड़े निर्देशों का इंतजार था। 

लेकिन इसके बजाय पिछले ही सप्ताह चीनी उद्योग के लिए 5538 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा हुई, जिसके तहत चालू वित्त वर्ष में मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात पर यातायात सब्सिडी तथा अतिरिक्त गन्ने पर 5.50 रुपये की बजाय 13.88 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सहायता राशि देने की मंजूरी दी गई। 

सरकार के इस कदम से चीनी उद्योग को राहत मिली है और किसानों में भी आस जगी है कि मिलों पर बकाया हजारों करोड़ की राशि का भुगतान जल्द हो जाएगा। यह कोई पहला अवसर नहीं कि मिलों की रक्षा के लिए सरकारी सब्सिडी का प्रबंध किया गया हो। इससे पहले भी उनको भारी-भरकम सब्सिडी मिलती रही है। जून में भी चीनी मिलों के लिए 8500 करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान किया गया था, जिसमें 4440 करोड़ रुपये मिलों को एथनॉल क्षमता के विकास हेतु सस्ते कर्ज के रूप में दिया जाना है। 

1332 करोड़ की ब्याज सहायता और गन्ने के रस से बने एथनॉल का खरीद मूल्य 47 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 59 रुपये किया जाना भी मिलों के हक में है। छह महीने पहले केंद्र सरकार द्वारा चीनी के आयात शुल्क को 40 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया गया था ताकि चीनी मिलों द्वारा गन्ना उत्पादकों के बकाये की भुगतान क्षमता प्रभावित न हो। पूर्ववर्ती सरकारें भी इसी तरह चीनी मिलों की मदद करती रही हैं। ऐसी घोषणाएं मिलों पर किसानों की बकाया राशि चुकाने के नाम पर होती आ रही हैं लेकिन इनका प्रत्यक्ष लाभ मिल मालिकों को ही होता है। 

आज की तारीख में चीनी मिलों पर किसानों के 13,567 करोड़ रुपये बकाया हैं। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों मिलों को दिए गए गन्ने की कीमत किसानों को अब तक नसीब नहीं हुई है, जबकि मौजूदा बकाये की राशि के लगभग बराबर की रकम मिलों को बतौर राहत प्राप्त हो चुकी है। लगभग प्रत्येक वर्ष उत्पन्न होती आ रही भुगतान की समस्या के उपचार के लिए पिछले तीन महीने में चीनी उद्योग के लिए यह दूसरा बड़ा राहत पैकेज है। 

पिछले वर्ष चीनी के रिकार्ड 3.2 करोड़ टन के उत्पादन के कारण इसका अत्यधिक भंडारण भी एक समस्या बना। अभी देश में लगभग एक करोड़ टन चीनी का भंडार है। 2018-19 में इसका उत्पादन 3.5 करोड़ टन अनुमानित है जबकि अपने देश की वार्षिक घरेलू मांग लगभग 2.5 करोड़ टन ही है। ऐसे में चीनी की कीमत जमीन न छूने लगे, यह सुनिश्चित करने का अकेला तरीका भरपूर निर्यात ही है। लेकिन इसमें भी समस्या यह है कि अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चीनी की कीमत गिरी हुई है। 

भारत में अत्यधिक उत्पादन की स्थिति के दुष्प्रभावों पर काबू पाने के प्रयास में उत्पादन सहायता राशि में लगभग 8 रु प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी और इस राशि को सीधा किसानों के खाते में हस्तांतरित करने की घोषित पहल बकाया चुकाने में मददगार होगी लेकिन 

इससे किसानों को बकाये के अलावा कुछ नहीं मिल पाएगा। सेंट्रल शुगरकेन ऑर्डर के अनुसार मिलों द्वारा किसानों को खरीद के 14 दिनों के अंदर भुगतान करने का आदेश है। ऐसा नहीं होने पर 15 फीसदी वार्षिक दर से ब्याज देने का प्रावधान भी है। लेकिन ऐसे आदेश कागजों तक सीमित हैं। 

2016-17 के दौरान देश में चीनी उत्पादन कम होने और बड़ी मात्रा में इसका आयात किए जाने के कारण चीनी की कीमत 36 रुपये प्रति किलो तक चली गई। इस दौरान वैश्विक कीमतें भी उछाल पर 490 डॉलर प्रति टन रहीं। बढ़ती कीमत के उत्साह में 2017-18 के दौरान खेती का रकबा बढ़ा 

और अनुकूल मानसून के कारण चीनी उत्पादन में ऐतिहासिक 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो 

गई। चालू वर्ष में यह आंकड़ा और बढ़ने वाला है। बंपर उत्पादन जैसी स्थिति में आयात तो बंद हुआ ही, अंतरराष्ट्रीय कीमतों में लगभग 50 फीसदी की भारी गिरावट से भारतीय 

चीनी के निर्यात को भी झटका लगा। ऐसे में मिलों पर किसानों की बकाया राशि और ज्यादा बढ़ने की आशंका है। • बढ़ती हुई लागत 

जुलाई में सरकार द्वारा गन्ने के एफआरपी में प्रति क्विंटल 20 रुपये की वृद्धि सराहनीय पहल रही। पिछली सरकार ने इसमें कोई इजाफा नहीं किया था। लेकिन दिक्कत यह है कि जुलाई से लेकर आज तक डीजल और पेट्रोल की कीमतें भी बढ़ी हैं। लगभग प्रत्येक फसल मौसम के दौरान पैदावार में अधिकता के कारण किसानों को लागत मूल्य से वंचित रहना पड़ता है। अनियमित भुगतान के कारण किसानों की मूलभूत आवश्यकताएं भी प्रभावित होती हैं। यही कारण है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यधारा से कट गई है। ऐसे में किसानों को ध्यान में रखकर ठोस नीति बनाना जरूरी है। 

(लेखक जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
सरकार चीनी उद्योग को भारी सब्सिडी दे रही है मगर मिलों पर किसानों का बकाया बढ़ता जा रहा है

 
  

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