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सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बनेगा भारत
Date: 04 Sep 2018
Source: Business Standard
Reporter: अजय मोदी और संजीव मुखर्जी
News ID: 34493
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भारत चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता तो है ही, अब वह ब्राजील को पीछे छोड़कर सबसे बड़ा उत्पादक भी बनने जा रहा है। हालांकि यह इस उद्योग के लिए परेशानी का सबब बनेगा और यह एक अत्यधिक नियंत्रित क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करता है। चीनी उद्योग का कच्चे माल की कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं है और सरकार चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर कदम उठाती रहती है। भारत ऐसे समय चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक बनेगा, जब वैश्विक स्तर पर बड़ी मात्रा में सरप्लस के कारण ब्राजील गन्ने का इस्तेमाल एथेनॉल उत्पादन में करने लगा है। दूसरी ओर भारत अपने वर्तमान स्टॉक का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पा रहा है, जबकि आगे भी रिकॉर्ड उत्पादन के आसार नजर आ रहे हैं। 
 
उत्तर प्रदेश में सात चीनी मिलों की मालिक त्रिवेणी इंजीनियरिंग ऐंड इडस्ट्रीज के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक तरुण साहनी ने कहा, 'देश के सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बनने से भारतीय चीनी उद्योग को अब तक के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजरना पड़ेगा। जितने सरप्लस का अनुमान है, उससे मिलों को बड़ी मात्रा में नुकसान हो सकता है।' ब्राजील में चीनी उद्योग काफी हद तक नियंत्रण मुक्त है। वहां चीनी सीजन 2018-19 में करीब 310 लाख टन चीनी उत्पादित होने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में करीब 22 फीसदी कम है। दूसरी ओर भारत में चीनी सीजन (अक्टूबर से सितंबर) 2018-19 में 355 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है, जिससे 2017-18 में 320 लाख टन का रिकॉर्ड टूट जाएगा। देश में सालाना घरेलू खपत करीब 250 लाख टन है। इससे 100 लाख टन चीनी सरप्लस बच जाएगी। जब चालू चीनी वर्ष सितंबर में खत्म होगा, तब उद्योग के पास पहले ही 100 लाख टन चीनी अतिरिक्त होगी। अगर उद्योग ने कुछ लाख टन चीनी का निर्यात नहीं किया तो सितंबर 2019 तक कुल सरप्लस 200 लाख टन से अधिक हो जाएगा। देश में कभी इतना बड़ा सरप्लस नहीं रहा। 
 
लेकिन ब्राजील का चीनी उद्योग बेहतर स्थिति में है। ब्राजील की मिलों ने इस कैलेंडर वर्ष में कच्चे तेल की कीमतों में सुधार और चीनी के वैश्विक सरप्लस से कम कीमतों को देखते हुए कम चीनी का उत्पादन किया है। वहां की मिलें गन्ने का इस्तेमाल एथनॉल बनाने में कर रही हैं। ब्राजील में एथनॉल का इस्तेमाल वाहनों को चलाने में वैकल्पिक ईंधन के रूप में होता है। साहनी ने कहा, 'ब्राजील का उद्योग गन्ने का उपयोग अपने लाभ के हिसाब से करता है। भले ही वहां का उद्योग ज्यादा चीनी उत्पादित करे या एथनॉल, मगर वह पूरे गन्ने का इस्तेमाल करता है और इससे किसानों के हितों की भी सुरक्षा होती है।'
 
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि हम रिकॉर्ड चीनी उत्पादन को लेकर गर्व नहीं कर सकते। एक देश के रूप में हम राष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल में 5 फीसदी एथनॉल के मिश्रण का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए, जबकि इस कार्यक्रम को शुरू हुए 12 साल से अधिक समय हो चुका है। उद्योग को कभी लाभ और कभी घाटे के कारण यह डिस्टिलरी क्षमता के विस्तार पर निवेश नहीं कर पाया। सरकार ने हाल में नए पैकेज की घोषणा की है, जिसमें गन्ने के रस और बी-हैवी शीरे से सीधे एथनॉल के उत्पादन को मंजूरी दी है। लेकिन इसके जमीनी स्तर पर नतीजे दिखने में समय लगेगा। नई डिस्टिलरी इकाइयां लगाने के लिए 44 अरब के रियायती ऋण की सरकार की योजना का भी एक निश्चित समय है। साहनी ने सरकार के इस कदम की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह धनराशि बढ़ाई जानी चाहिए और एथनॉल की आवाजाही पर करों को समाप्त किया जाना चाहिए। 
 
  

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