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चीनी उद्योग : खत्म हुई लेवी व्यवस्था तब, जुर्माना अब
Date: 27 Aug 2018
Source: Business Standard
Reporter: अजय मोदी और संजीव मुखर्जी
News ID: 34467
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देश की चीनी मिलें पहले ही गन्ने के बढ़ते बकाया और चीनी की कम कीमतों से जूझ रही हैं। अब सरकार के एक आदेश से उनके होश उड़े हुए हैं। दरअसल केंद्र सरकार ने बीते वर्षों में लेवी चीनी की जिम्मेदारी पूरी नहीं करने वाली मिलों को जुर्माना चुकाने को कहा है। सरकार का आदेश अब आया है जबकि यह लेवी व्यवस्था पांच साल पहले बंद हो चुकी है। नए निर्देश कुछ दिनों पहले जारी किए गए हैं। इसमें अपनी लेवी जिम्मेदारी पूरी न करने वाली चीनी मिलों से कहा गया है कि वे उस चीनी सीजन की बाजार कीमत और लेवी चीनी कीमत के अंतर का भुगतान करें। 
 
अब यह लेवी व्यवस्था बंद हो चुकी है। इस व्यवस्था के तहत हरेक घरेलू चीनी उत्पादक को प्रत्येक चीनी सीजन (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान अपने चीनी उत्पादन का एक निश्चित हिस्सा सरकार को रियायती दरों पर बेचना होता था। सरकार यह चीनी राशन की दुकानों के जरिये समाज के सबसे गरीब तबके को वितरित करती थी। चीनी क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करने पर गठित सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने यह व्यवस्था वर्ष 2013 में बंद कर दी। 
 
चीनी मिलों पर लेवी का बोझ लगातार घटाया जा रहा था और जब 2013 में यह व्यवस्था बंद की गई, तब लेवी चीनी मिलों के उत्पादन की 10 फीसदी थी। चीनी उद्योग लंबे समय से लेवी व्यवस्था को बंद करने का दबाव बना रहा था, जिसमें मिलों को सरकार की एक सामाजिक कल्याण योजना का बोझ उठाना पड़ता था। हालांकि चीनी मिलों ने कई मौकों पर सालाना लेवी की जिम्मेदारी पूरी नहीं की, जिसके लिए उन पर अब जुर्माना लगाया जा रहा है। आम तौर पर लेवी जिम्मेदारी पूरी न करने की वजह ऊंची बाजार कीमत होती थी क्योंकि चीनी मिलों को बाजार और लेवी कीमत के बीच भारी अंतर के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ता था। चीनी मिलों ने उन पर अब जुर्माना लगाने के लिए सरकार की आलोचना की है। 
 
एक अग्रणी सहकारी चीनी मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'यह अजीब है। हम कैसे पीछे जाएं और उन खातों को सभी ब्योरों की जांच-पड़ताल के लिए खोलें, जो कई साल पहले बंद हो चुके हैं।' सरकार के इस आदेश से उद्योग पर पडऩे वाले अनुमानित बोझ का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेवी की जिम्मेदारी खत्म हो गई है, इसलिए अब यदि राज्य सरकारें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये चीनी बांटना चाहती हैं तो वे खुले बाजार से खरीद के लिए स्वतंत्र हैं। सरकार का यह आदेश ऐसे समय आया है, जब गन्ने का बकाया बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है। गन्ने का बकाया बढऩे की वजह रिकॉर्ड चीनी उत्पादन से कीमतों में गिरावट आना है। इस उद्योग पर जुलाई के अंत तक गन्ना किसानों का बकाया 165 अरब रुपये था। इसमें से 105 अरब रुपये का बकाया अकेली उत्तर प्रदेश की मिलों पर है। 
 

केंद्र सरकार ने पिछले कुछ महीनों के दौरान चीनी उद्योग के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें से एक कदम 70 अरब रुपये का पैकेज है ताकि चीनी क्षेत्र वर्तमान मुश्किल से दौर से बाहर निकल सके और वह किसानों का बकाया चुका सके। इसके अलावा एथनॉल विनिर्माण संयंत्र लगाने के लिए आसान कर्ज, किसानों को 5.5 रुपये प्रति क्विंटल की प्रत्यक्ष सब्सिडी और मिलों के लिए न्यूनतम बिक्री कीमत तय करने जैसे कदम उठाए गए हैं।              

 
  

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