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गन्ने का एफआरपी २० रूपये प्रति क्विंटल बढ़ा
Date: 19 Jul 2018
Source: Business Standard
Reporter: Sanjeeb Mukherjee
News ID: 34368
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सरकार ने मिल मालिकों द्वारा किसानों को भुगतान किए जाने वाले गन्ने के मूल्य में 20 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोतरी का फैसला किया है। अक्टूबर से शुरू हो रहे 2018-19 चीनी सत्र के लिए गन्ने का मूल्य 275 रुपये प्रति क्विंटल होगा।  केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक के बाद  संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'मंत्रिमंडल ने आज 2018-19 सत्र के लिए कीमतें तय कर दी हैं। यह दाम उत्पादन की अनुमानित लागत से 77.42 प्रतिशत ज्यादा है, जो केंद्र सरकार को किसानों को उचित दाम देने की प्रतिबद्धता के मुताबिक है।' 
 
उन्होंने कहा कि वर्ष 2018- 19 के दौरान गन्ना उत्पादन की संभावित मात्रा को देखते हुए गन्ना किसानों को कुल 83,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। 275 रुपये प्रति क्विंटल दाम को 10 प्रतिशत रिकवरी दर के साथ जोड़ा गया है और 0.1 प्रतिशत रिकवरी बढऩे पर 2.75 रुपये प्रीमियम का भुगतान होगा।  इस समय 2017-18 सत्र के लिए एफआरपी दरें 9.5 प्रतिशत मूल रिकवरी दर से जुड़ी हैं और अगर रिकवरी दर में 0.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है तो प्रत्येक बढ़ोतरी पर 2.68 रुपये प्रति क्विंटल प्रीमियम मिलता है। 
 
इसका मतलब यह है कि बेहतर गुणवत्ता वाले गन्ने से रिकवरी दर बेहतर रहेगी और इससे किसानों को मौजूदा भाव की तुलना में प्रति क्विंटल ज्यादा दाम मिलेंगे।  जिस गन्ने में 9.5 प्रतिशत से कम रिकवरी होती है, उसे खराब गुणवत्ता का गन्ना कहा जाता है। इसके लिए किसानों को 2018-19 में 261.25 रुपये प्रति क्विंटल दाम मिलेंगे, जबकि मौजूदा भाव 255 रुपये प्रति क्विंटल है।  लेकिन यह किसानों के लिए कितना फायदेमंद होगा, इस पर निर्भर होगा कि चीनी का मिल मूल्य क्या होता है। मिलों को इस समय किसानों का भुगतान करने में दिक्कत हो रही है, जिसकी वजह से मार्च 2018 तक बकाया बढ़कर 200 अरब रुपये से ज्यादा हो गया था। 
 
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने एक बयान में कहा है कि मौजूदा एफआरपी 255 रुपये प्रति क्विंटल 9.5 प्रतिशत रिकवरी दर से जुड़ा हुआ है, जिसका भुगतान मौजूदा चीनी भाव पर करने में दिक्कत आ रही है। इसकी वजह से जून 2018 तक गन्ने का बकाया अभी भी 180 अरब रुपये बना हुआ है।  इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने एक बयान में कहा, 'पहली बार गन्ने का बकाया इतना ज्यादा हुआ है, जो अब तक का रिकॉर्ड है। ऐसे में अगले सत्र के लिए एफआरपी में बढ़ोतरी चीनी मिलों के लिए और मुश्किल बढ़ाएगा और किसानों को भुगतान करना वहनीय नहीं होगा जब तक कि चीनी के दाम में तेज बढ़ोतरी नहीं होती। इसके लिए चीनी मिल पर चीनी की कीमतें कम से कम 35 रुपये प्रति किलो होनी चाहिए होगी।' जून के आखिर तक गन्ने का बकाया 180 अरब रुपये हो गया है, जो पिछले दो साल के बकाये की तुलना में 140-150 अरब रुपये ज्यादा है, जब गन्ने का बकाया जून के अंत मेंं 45-48 अरब रुपये होता था। वर्मा ने आगे यह भी कहा कि सरकार को 2018-19 सत्र मेंं कम से कम 60-70 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए गंभीरता से कवायद करनी चाहिए, जिससे नकदी प्रवाह बना रहे  क्योंकि इस साल चीनी उत्पादन 350 से 355 लाख टन होने की उम्मीद है, जबकि खपत 255 लाख टन रहने का अनुमान है। 
 

सरकार ने हाल ही में धान सहित खरीफ (गर्मी में बोई जाने वाली) फसलों के दाम में तेज बढ़ोतरी की थी। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने आगामी सत्र के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी 20 रुपये बढ़ाकर 275 रुपये प्रति क्विंटल करने की सिफारिश की थी।  सीएसीपी सांविधिक  निकाय है, जो सरकार को प्रमुख कृषि उत्पादों की मूल्यों की नीति पर सरकार को सुझाव देती है। सामान्यतया सरकार सीएसीपी की सिफारिशें स्वीकार कर लेती है।  इस बढ़ोतरी का असर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों पर भी पड़ेगा, जो केंद्र सरकार की ओर से घोषित एफआरपी को नहीं मानते और अपनी ओर से बढ़ा मूल्य घोषित करते हैं। प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा गन्ने का अपना मूल्य तय करते हैं, जिसे राज्य सलाहकारी मूल्य (एसएपी) कहा जाता है।              

 
  

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