मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) ने बुधवार को एथेनॉल पर जीएसटी को 18 पर्सेंट से घटाकर 12 पर्सेंट करने सिफारिश की। हालांकि जीओएम ने शुगर पर सेस लगाने का समर्थन नहीं किया क्योंकि मिलों पर गन्ना किसानों की बकाया राशि पहले से कम हो रही है। अधिकारियों ने बताया कि असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता वाला जीओएम इस मामले पर अटॉनी जनरल की राय का इंतजार करेगा कि मौजूदा जीएसटी व्यवस्था के तहत सेस लगाया जा सकता है या नहीं। अगर अटॉर्नी जनरल की राय सेस लगाने के पक्ष में हुई तो जीओएम लग्जरी प्रॉडक्ट्स पर 1 पर्सेंट सेस लगाने पर विचार कर सकता है ताकि एग्रीकल्चर सेक्टर में आने वाली समस्याओं से निपटा जा सके।
मई में जीएसटी काउंसिल की हुई आखिरी बैठक में शुगर पर सेस लगाने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए जीओएम को गठित किया गया था। फूड मिनिस्ट्री ने शुगर की सप्लाई पर 5 पर्सेंट जीएसटी के अतिरिक्त 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से सेस लगाने का प्रस्ताव दिया है। इस टैक्स से 6,700 करोड़ रुपये जुटने का अनुमान है जिसे शुगर सेक्टर और गन्ना किसानों की मदद के लिए विभिन्न फंड में डाला जाएगा। जीओएम की मीटिंग के बाद हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि शुगर के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) 29 रुपये प्रति किलो तय किए जाने के बाद गन्ना किसानों की बकाया राशि 5,000 करोड़ रुपये कम होकर 18,000 करोड़ रुपये हो गई है। सरमा ने कहा, 'इस सकारात्मक बदलाव को देखते हुए हमें नहीं लगता कि इस समय शुगर पर सेस लगाए जाने की जरूरत है।' 21 जुलाई को होने वाली जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में जीओएम की सिफारिशों को पेश किया जाएगा। सरमा ने कहा कि जीएसटी काउंसिल से जीओएम एथेनॉल पर लगने वाले 18 पर्सेंट जीएसटी को घटाने की सिफारिश करेगी। अधिकारियों ने बताया कि जीओएम की तरफ से एथेनॉल पर जीएसटी को घटाकर 12 पर्सेंट करने की सिफारिश किए जाने की संभावना है। हालांकि फूड मिनिस्ट्री इस जीएसटी को घटाकर 5 पर्सेंट करने की मांग कर रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले महीने शुगर इंडस्ट्री के लिए 8,000 करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज का ऐलान किया था ताकि कैश की किल्लत से जूझ रही गन्ना मिलें किसानों के बकाया का भुगतान कर सकें। इसके साथ ही शुगर के एमएसपी को भी 29 रुपये प्रति किलो तय किया गया था। जीएसटी काउंसिल के एक अधिकारी ने बताया कि जीएसटी व्यवस्था को सभी तरह के सेस, सरचार्ज और अन्य तरह के टैक्स को हटाकर लाया गया था। ऐसे में इसके अंदर सेस लगाने जाने की कानूनी वैधता को लेकर काउंसिल ने इसके पहले भी अटार्नी जनरल से राय मांगी थी। हालांकि जीएसटी के अंदर सेस लगाए जाने के एक मामले के सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण अटार्नी जनरल ने अभी तक इस पर राय नहीं दी है।