एथनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम : इससे देश के गन्ना उत्पादक किसानों के लिए बन रही बड़े लाभ की संभावना सुमित गुप्ता लेखक यस बैंक में फूड एंड एग्रीबिजनेस रिसर्च मैनेजमेंट के कंट्री हैड हैं। यहां इबीपी नीति के चीनी उद्योग पर पडऩे वाले प्रभाव का विश्लेषण देश के गन्ना उत्पादक किसानों और चीनी उद्योग के हितों के मद्देनजर जनवरी 2003 की शुरुआत में भारत सरकार ने अपने महत्वाकांक्षी एथनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम (ईबीपी) के माध्यम से गैसोलीन में 5 प्रतिशत एथनॉल के मिश्रण के इस्तेमाल का आदेश दिया था। बाद में इस लक्ष्य को पुन: निर्धारित कर वर्ष 2009 में 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अंत में 20 प्रतिशत कर दिया गया।
यह एक सैद्धांतिक नीतिगत बदलाव था लेकिन सच यही है कि वास्तविकता में इस लक्षित प्रतिशत का मिश्रण कभी नहीं किया गया। अपने तरह के पहले रिकॉर्ड में तेल विपणन कंपनियों ने वर्ष 2013-2014 में 72 करोड़ लीटर एथनॉल का कीर्तिमान बनाया है, यह कवायद नकदी के मामले में देश के तंगहाल चीनी उद्योग को मिश्रण की दिशा में प्रेरित करने के लिये की गयी है।
यह जीवाश्म ईंधनों के आयात को रोकने का भी एक प्रयास है, जो संभवत: तेल विपणन कंपनियों (ओएमसीज) को सरकार द्वारा निर्देशित 5 प्रतिशत के मिश्रण की नीति की शुरुआत के बाद पहली बार हासिल करने का अवसर दे रहा है। यह एक ऐसे सेक्टर में स्वागत योग्य कदम है, जो सेक्टर विश्व के साथ ही भारत में लगातार चार वर्षों से अधिशेष उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों की गिरावट का दंश झेल रहा है।
उम्मीद की जा रही है कि इस परिवर्तन में अब गन्ना उत्पादक किसानों और चीनी उद्योग में गुणात्मक बदलाव आ सकता है। दरअसल मिश्रण को वास्तव में वर्तमान स्कीम में उच्च स्तर तक बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि चीनी के उत्पादन में वृद्धि के कारण एथनॉल की पर्याप्त आपूर्ति उपलब्ध है।
गन्ने के बंपर उत्पादन वाले वर्षों में एक वैकल्पिक बाजार को उपलब्ध कराने के तरीके के द्वारा समूचे देश के गन्ना उत्पादक किसानों के लिए स्थायित्वपूर्ण लाभ की प्राप्ति इस कार्यक्रम के प्रत्यक्ष लाभ का संकेत करती है। इस सफलता का तीव्र प्रभाव व्यापक स्तर पर होगा।
इससे चीनी मिलों की बेहतर व्यवहार्यता के शुद्ध चक्र को गति प्रदान करने, मिल मालिकों के उधारी को कम करने व किसानों को बकायों का भुगतान करने की बेहतर क्षमता हासिल करने, मिल मालिकों को अपनी मिलों को क्रियाशील बनाये रखने के लिए प्रोत्साहन देने, रोजगार के उत्पादन, किसानों के सशक्तीकरण, गन्ने के उत्पादन को प्रोत्साहन प्रदान करने, गन्ना क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में किये जाने वाले योगदान को प्रोत्साहन देने तथा गन्ना उत्पादक राज्यों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सर्वांगीण रुप से बढ़ावा देने जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
सरकार द्वारा एक विवेक-सम्मत गन्ना मूल्य फॉर्मूला के निर्धारण के साथ ईबीपी प्रोग्राम दो ऐसे प्रमुख उपाय हैं, जिससे भारतीय चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति को समाधान उपलब्ध कराया जा सकता है। इन दोनों उपायों को चीनी उद्योग के उत्थान के लिए किसी भी गंभीर प्रभावकारी सृजन की प्रारंभिक अवस्था के रुप में देखा जा सकता है। इन्हें हालिया नीतिगत पहलुओं के शुभारंभ के आलोक में देखा जाना उचित होगा।
इन पहलुओं में चीनी बाजार का अविनियमन, निर्यात प्रोत्साहन की शुरुआत एवं सबवेंशन स्कीम्स शामिल हैं, जो गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान करने की दिशा में लक्षित हैं। एथनॉल के मिश्रण के पूर्ण क्रियान्वयन से वर्तमान 2013-2014 गन्ना सत्र में वार्षिक स्तर पर एक अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा बचायी जा सकती है।
यह उच्च चालू खाता घाटे के वर्तमान परिदृश्य में भारत के तेल आयात बिल में वार्षिक तौर पर 20 अरब अमेरिकी डॉलर को कम करने की दिशा में एक कदम है।
इसके परिणाम आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में साफ तौर पर परिलक्षित हो सकते हैं। बात अगर थोड़े ऐतिहासिक संदर्भों में करें तो कहा जा सकता है कि अतीत में ईबीपी के सफल क्रियान्वयन के लिए अनेक प्रयास किये गये।
एथनॉल मूल्य फार्मूले की अनिश्चितता व विभिन्न राज्यों द्वारा किये जाने वाले प्रक्रियागत विलंब, ओएमसीज को आपूर्ति किये जाने वाले एथनॉल मूल्य के स्थायित्व की प्रवृत्ति बनाम अन्य स्पर्धी उद्योगों द्वारा पेश किये जाने वाले बाजार आधारित मूल्य, अल्कोहल विकल्प की उपलब्धता से संबंधित मांग व आपूर्ति में भिन्नता (पोटेबल अल्कोहल उद्योग को अल्कोहल के निर्माण के लिए गन्ना उद्योग पर निर्भर कर देना तथा इसके बाद एथनॉल की उच्च कीमत की पेशकश करना) तथा कच्चे तेल एवं एथनॉल के बीच कीमतों के अंतर को बरकरार रखने कि लिए ओएमसीज का सुरक्षात्मक रवैया (कच्चे तेल की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव के कारण) जैसे कुछ ऐसे नकारात्मक कारण हैं, जिन्होंने ईबीपी के क्रियान्वयन की प्रगति को धीमा कर दिया है।
अब हम एक निर्धारित पथ पर आगे बढ़ते हुये प्रतीत हो रहे हैं। अब निश्चित रुप से खुश होने की वजह दिखाई देने लगी है। मिश्रण के अनुपात में वृद्धि के संदर्भ में सरकार ने प्रमुख तौर पर अतिरिक्त उपायों की एक शृंखला की भी घोषणा की है। इसमें मिश्रण के लिये प्रयुक्त होने वाले एथनॉल की कीमतों का अविनियमन, विभिन्न राज्यों में मिश्रण की एकरूपता का अभाव तथा घरेलू आपूर्ति में कमी की स्थिति में एथनॉल के आयात की अनुमति देना शामिल है।
हालांकि एथनॉल की कीमतों का अविनियमन स्वागत योग्य कदम है, लेकिन यह कोई विशेष कारगर कदम नहीं है। ईबीपी की असली सफलता अन्य अनेक कारकों, जैसे घरेलू व वैश्विक बाजारों में अल्कोहल के उत्पादन का चलन तथा स्पर्धी उद्योगों की आयात एवं मांग संबंधी व्यवहार्यता पर निर्भर करता है।
आखिर में निष्कर्ष रूप में पिछले चार दशकों, विशेष कर ब्राजील जैसे देशों, के वैश्विक अनुभव से सबक लेते हुये यह स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि एक प्रभावी ईबीपी प्रोग्राम एक दूरगामी कदम साबित हो सकता है, जो निश्चित रुप से राज्य के व्यावसायिक, सामाजिक एवं स्थायित्वपूर्ण लक्ष्यों की पूर्ति को सुनिश्चित करने में सक्षम है।
जब तक कि इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं किया जायेगा, तब तक चीनी क्षेत्र की अन्य नीतिगत पहलों का एक स्थायित्वपूर्ण आधार पर मामूली प्रभाव पड़ेगा। हम एक बड़े चालू खाता घाटे एवं एक बीमार चीनी क्षेत्र की वर्तमान चुनौती के साथ इतिहास के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर खड़े हैं। इस प्रकार एक राष्ट्र के रुप में हमारे ऊपर यह दायित्व है कि हम इन कठिनाइयों में भी अवसर का सदुपयोग करने का संकल्प लें।