न्यूनतम बिक्री कीमत तय करने, बफर स्टॉक तथा एथेनॉल फैक्टरी तैयार करने के बावजूद उत्तर भारत में एक्स-मिल बिक्री कीमतों में पर्याप्त तेजी नहीं आई है ताकि चीनी मिलें गन्ने का बकाया पर्याप्त तरीके से चुका सकें। उन्हें प्रत्येक क्विंटल गन्ना पेराई में 150 रुपये का घाटा हो रहा है। अधिकारियों का मानना है कि उत्तर भारत में चीनी की मासिक बिक्री की सीमा तय किये जाने से एक्स-मिल कीमतों में तेजी शुरू होगी। उसेक बाद ही मिलें गन्ने का बकाया चुकाने की बेहतर स्थिति में होंगी। हालांकि इन दावों की सच्चाई का परीक्षण अभी होना है। कई विशेषज्ञों को नहीं लगता कि अतिरिक्त चीनी की समस्या अभी खत्म होगी क्योंकि अक्टूबर में 2018-19 के नए सीजन में उत्पादन शुरू होगा जिसमें भी 3.3 करोड़ टन से ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है। एक महीने से भी कम अवधि के दौरान केंद्र ने दो दफा एक के बाद एक राहत पैकेज मुहैया कराया है। बावजूद प्रदेश में मिलें गन्ने की बकाया राशि चुकाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। हालांकि महाराष्ट्र की चीनी मिलें ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। राज्य की चीनी मिलों का मानना है कि आने वाले दिनों में वे सभी बकाया राशि का भुगतान कर देंगी और अगले 100 दिनों में शुरू होने वाले पेराई सीजन के लिए उनके पास कुछ नकदी भी रहेगी। महाराष्ट्र में जैसे ही चीनी की बोरियां तैयार होने लगेंगी, मिलें राज्य और जिला सहकारी बैंकों से चीनी की बोरी के औसत मूल्य का 85 फीसदी तक का ऋण ले सकेंगी। इस औसत मूल्य की गणना पिछले तीन महीने की कीमतों के आधार पर की जाएगी। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, 'अगर ऐसा नहीं होता तो महाराष्ट्र की चीनी मिलें फंसे हुए कर्ज में तब्दील हो जातीं।'