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बफर स्टॉक पर मिलेगी सरकारी मदद
Date: 19 Jun 2018
Source: Business Standard
Reporter: Rajesh Bhayani
News ID: 31297
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चीनी के 30 लाख टन के बफर स्टॉक निर्माण संबंधी नियम केंद्रीय उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित कर दिए गए हैं। इस अधिसूचना के अनुसार, मिलों से चीनी खरीदने के बजाय सरकार चीनी की लागत का वित्त पोषण करेगी और इसका भंडारण मिलों के हीगोदामों में किया जाएगा। साथ ही, मिलों की चीनी बैंकों के पास गिरवी रहेगी। सालाना 12 प्रतिशत की वित्तीय लागत या बैंक द्वारा लगाए गए वास्तविक ब्याज (जो भी कम हो) और प्रति वर्ष 1.5 प्रतिशत का भंडारण शुल्क और बीमा भी सरकार वहन करेगी। 
 
हालांकि, जिस बात ने मिलों को परेशान किया है, वह यह है कि चीनी की 29 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमतें मिलों के लिए अधिसूचित किए गए न्यूनतम मूल्य (एक्स-फैक्ट्री) के समान हैं। हालांकि, यह मूल्य सरकार द्वारा मिलों को दिए जाने वाले वित्त और बीमा शुल्कों की प्रतिपूर्ति के लिए ही होगा। सरकार ने प्रत्येक मिल के लिए बफर स्टॉक पर जो प्रतिपूर्ति शुल्क तय किया है, उसका इस्तेमाल गन्ना किसानों का बकाया चुकाने में किया जाएगा। सरकार प्रतिपूर्ति का यह व्यय सब्सिडी से वसूलेगी। मंत्रिमंडल ने 30 लाख टन बफर स्टॉक की दिशा में एक वर्ष के लिए 11.75 अरब रुपये के प्रावधान को मंजूरी दे दी है।
 
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि बफर स्टॉक निर्माण अस्थायी तौर पर बाजार से 30 लाख टन को हटा देगा और मिलों पर तुरंत बिक्री के दबाव को कम कर देगा। इससे बाजार की अवधारणा में सुधार होगा और कीमतों में गिरावट रुकेगी। चूंकि पूरे देश की औसत उत्पादन लागत 35-36 रुपये प्रति किलोग्राम है, इसलिए चीनी की ढुलाई लागत की प्रतिपूर्ति की जानी चाहिए, न कि 29 रुपये प्रति किलो की प्रतिपूर्ति।
 
अधिसूचना के अनुसार यह बफर स्टॉक एक साल की अवधि के लिए होगा, जिसकी शुरुआत 1 जुलाई, 2018 से होगी और मिलों को शुल्कों का भुगतान कुछ निश्चित शर्तें पूरी करने के बाद तिमाही आधार पर किया जाएगा। अलबत्ता, एक अन्य मसला जो आड़े आता है, वह है चीनी मिलों के लिए चीनी जारी किए जाने की प्रणाली। मिलें कोटा प्रणाली से नाराज हैं। उद्योग के अधिकारी के अनुसार, मंत्रिमंडल ने स्टॉक सीमा का विवरण नहीं दिया है, लेकिन सरकारी अधिकारी 2012 से पहले लाइसेंस राज के दौरान प्रचलित आपूर्ति कोटा प्रणाली वापस ले आए हैं।
 
वर्मा ने कहा कि चीनी बिक्री का मासिक कोटा लाइसेंस राज में पीछे जाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। जून के लिए जारी कोटा या स्टॉक रखने की सीमा 31 मई को रखे गए स्टॉक पर अधिक और उत्पादन पर कम आधारित है। इसलिए जिन मिलों ने पिछले साल इतनी अधिक बिक्री नहीं की, उन्हें मौजूदा सीजन के पहले छह महीनों में अधिक कोटा मिला है। एक अधिकारी ने नाम का खुलासा न करने की शर्त पर बताया, 'उन्होंने 31 मई को मिलों के पास अंतिम स्टॉक के आधार पर कोटा निर्धारित किया है।' 
 
अधिकारी के अनुसार, इसकी वजह यह है कि स्टॉक सीमा होने के बावजूद कई निजी मिलों ने पिछले कुछ महीनों के दौरान इस कोटे का उल्लंघन किया है और इस कारण वे सब्सिडी की पात्र नहीं होंगी। हालांकि, महाराष्ट्र में जिन सहकारी समितियों ने एक साल पहले की तुलना में उत्पादन में खासा इजाफा दिखाया है, उन्होंने स्टॉक सीमा पूरी कर ली है और स्टॉक सीमा की गणना करने की किसी भी अन्य विधि महाराष्ट्र और कर्नाटक की चीनी मिलों को नुकसानदायक स्थिति में रख देती।
 
वर्मा को स्टॉक सीमा हटाने की सफलता में संदेह लगता है। उन्होंने कहा कि कोटा जारी करने की प्रणालियां दामों को नियंत्रित करने में असफल हो गई हैं। इन से दक्षता और निवेश को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। एक बार अगर चीनी के न्यूनतम दाम निर्धारित कर दिए जाएं, तो चीनी के दामों को नियंत्रित करने में बिक्री कोटे की कोई भूमिका नहीं रहती।
 
  

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