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राहत पैकेज किसानों के जीवन में लाएगा मिठास
Date: 07 Jun 2018
Source: Nav Bharat Times
Reporter: Narendra Mishra
News ID: 30270
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष गन्ना बनाम जिन्ना के मुद्दे पर चुनाव लड़ी। विपक्ष को चुनाव में जीत मिली। इसके बाद यह चर्चा और तेज हुई कि क्या गन्ना किसान सचमुच इतने खस्ताहाल हैं/ और क्या वे राजनीतिक रूप से इतने ताकतवर भी हैं कि इसकी दिशा को प्रभावित कर सकें/ केंद्र सरकार ने कैराना हार के बाद गन्ना किसानों के लिए 8500 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की जो घोषणा की है, उससे यह लगता है कि उसने नतीजे से सबक लेने के अलावा गन्ना किसानों को कुछ देर से ही सही, तरजीह भी दी है। 

सरकार ने अपने पैकेज को ऐतिहासिक बताया है। जाहिर है इससे किसानों और दूसरे तबकों के लिए भी उम्मीद जगी है। सरकार का दावा है कि चीनी की कीमत बिना बढ़ाए किसानों तक बड़ी राहत पहुंचाई जाएगी। लेकिन अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे सुगर इंडस्ट्री और किसानों के लिए यह राहत पैकेज मिठास देने के लिए काफी है/ इस पर राय बंटी हुई है।



अच्छा, पर नाकाफी 

सरकार की ओर से राहत पैकेज की घोषणा के फौरन बाद इसकी तारीफ हुई। लेकिन इसे नाकाफी भी बताया गया। यह भी कहा गया कि इससे लंबे वक्त का समाधान नहीं मिलेगा। सरकार ने कैबिनेट फैसले के माध्यम से चीनी की न्यूनतम कीमत और बफर स्टॉक की सीमा तय की। इसके साथ-साथ गन्ना उत्पादकों के बकाये के भुगतान और इथनॉल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सुगर मिलों को वित्तीय मदद पर भी फैसला लिया है। 

इंडियन सुगर मिल्स असोसिएशन के डीजी अविनाश वर्मा के मुताबिक, 'सरकार ने चीनी का न्यूनतम मूल्य यानी फ्लोर प्राइस 29 रुपये प्रति किलोग्राम तय किया है, जो उत्पादन लागत से कम से कम 7-8 रुपये कम पड़ता है। साथ ही 30 लाख टन सुगर मिलों का बफर स्टॉक बनाने से इतनी चीनी गोदाम में पड़ी रहेगी। यही बाजार में आती, तो अभी जो आपूर्ति का दबाव है, उससे बड़ी राहत मिलती। ऐसे में पैकेज से कुछ समय के हल के बाद फिर यही समस्या उभर आएगी। सुगर इंडस्ट्री को लंबे वक्त के समाधान की उम्मीद है।' 

लागत बदल देती है सारा गणित

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि सब कुछ लागत का मामला है। जब तक इसे कम करने का कोई हल नहीं निकलेगा, हालात ऐसे ही बने रहेंगे। राहत पैकेज बस तात्कालिक हल बन कर रह जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों को 14 दिनों तक पेमेंट न देने के बाद ब्याज लगने लगता है। 2000 करोड़ तो पिछले साल का ब्याज ही लंबित है। जानकारों के अनुसार, सुगर इंडस्ट्री की हालत तब और खराब हो गई, जब देश में चीनी का उत्पादन जरूरत से कहीं ज्यादा हो गया। 

पिछले साल देश में य 250 लाख टन उत्पादन का टारगेट था। लेकिन असल में उत्पादन 322 लाख टन हुआ। पिछले साल की शुरुआती स्टॉक 40 लाख टन का था। मतलब देश में 360 लाख टन चीनी अभी उपलब्ध है, जबकि देश की जरूरत 250 लाख टन ही है। एक्सपोर्ट में भेजने में इनकी लागत और बढ़ जाएगी। 

फिलहाल 2600-2700 रुपये क्विंटल चीनी एक्स मिल रेट पर मिलता है, जबकि इस पर खर्चा 3500-3600 रुपये प्रति क्विंटल का आता है। मिल मालिक लागत में इसी फैसले का रोना रोते हैं। और वे खुद अपने नुकसान की बात कह कर किसानों को पेमेंट नहीं करने की बात कहते हैं। इसी हिसाब से लागत 22 हजार करोड़ तक बढ़ गया है।


             

 
  

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