जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गन्ना किसानों और चीनी उद्योग को संकट से उबारने के इरादे से चीनी पर सैस लगाने की दिशा में सरकार की कोशिशों को झटका लगा है। इस मुद्दे पर विचार कर रहे जीएसटी काउंसिल के मंत्री समूह में सैस लगाने के प्रस्ताव पर सहमति नहीं बनी है। यही वजह है कि मंत्री समूह ने अब इस मामले में कानून मंत्रालय की राय लेने का फैसला किया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि जीएसटी के तहत चीनी पर सैस लगाया जा सकता है या नहीं। अगर सैस लगाया जाता है तो उससे जुटायी जाने वाली धनराशि का किस तरह इस्तेमाल किया जाए, इस बारे में मंत्री समूह ने खाद्य मंत्रालय से रिपोर्ट मांगने का फैसला भी किया।
असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह की सोमवार को दिल्ली में पहली बैठक हुई जिसमें के वित्त मंत्री थॉमस आइजैक ने चीनी पर सैस लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया।
बैठक के बाद सरमा ने कहा कि जीओएम की पहली बैठक हुई। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि क्या काउंसिल को सैस लगाने का अधिकार है या नहीं। यही वजह है कि काउंसिल ने इस मामले में कानून मंत्रालय से सलाह लेने का फैसला किया है। कानून मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय से इस महीने के अंत क जीओएम अब तीन जून को मुंबई में बैठक करेगा।
जीएसटी की व्यवस्था के तहत सिर्फ लग्जरी और सिन गुड्स पर ही जीएसटी की अधिकतम 28 प्रतिशत दर के अलावा एक सैस लगाने का प्रावधान है। इसे क्षतिपूर्ति सैस के तौर पर जाना जाता है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार राज्यों को होने वाली राजस्व क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए करती है। यही वजह है कि अब यह सवाल उठ रहा है कि काउंसिल चीनी पर सैस लगा सकती है या नहीं।
जीएसटी काउंसिल की चार मई को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई बैठक में सरकार ने चीनी पर अधिकतम 3 रुपये प्रति किलो सैस लगाने का प्रस्ताव रखा था। चीनी पर फिलहाल पांच प्रतिशत जीएसटी लगता और प्रस्तावित सैस इसके अतिरिक्त होगा। सरकार का अनुमान है कि इससे लगभग 6700 करोड़ रुपये जुटाए जा सकते हैं जिनका इस्तेमाल चीनी उद्योग को संकट से उबारने के लिए किया जा सकता है। काउंसिल ने ईथनॉल पर जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत करने पर भी विचार किया था लेकिन इस पर भी कोई फैसला नहीं हो पाया था। इसीलिए सरमा के नेतृत्व में यह मंत्री समूह बनाया जिसमें उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के वित्त मंत्री बतौर सदस्य शामिल हैं।