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चीनी मिलें खाद्य प्रसंस्करण भी करेंगी!
Date: 26 Apr 2018
Source: Business Standard
Reporter: वीरेंद्र सिंह रावत
News ID: 30066
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इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में कथित रूप से उन किसानों ने उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने कई टन आलू फेंक दिए थे, जो पिछले साल 1.5 करोड़ टन की जोरदार फसल के बाद दाम गिरने से व्याकुल थे। हालांकि, बाद में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने इसके पीछे विपक्ष की समाजवादी पार्टी का हाथ होने का दावा किया था। बहरहाल, इस घटना ने राज्य में 'प्रचुरता की समस्याÓ को सामने ला दिया। जहां एक ओर, उत्तर प्रदेश में कृषि और बागवानी उत्पादन बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर आपूर्ति की बाधाओं, कोल्ड स्टोर प्रबंधन और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अभाव में कृषि से किसानों की कम आमदनी और बड़े पैमाने पर कृषि क्षति उजागर हुई है।

 

 
अब योगी आदित्यनाथ सरकार गैर सीजन के दौरान राज्य की चीनी मिलों की निष्क्रिय क्षमता का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण के लिए करना चाहती है। गन्ना पेराई परिचालन समाप्त होने के बाद राज्य की चीनी मिलें आमतौर पर 6-7 महीने के लिए निष्क्रिय रहती हैं। इनमें से अधिकांश इकाइयां विशाल फैक्टरी परिसरों के साथ मध्य और पश्चिम उत्तर प्रदेश में हैं, जो एकीकृत चीनी और खाद्य प्रसंस्करण परिसरों में तब्दील होने की संभावना का संकेत देती हैं। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के पास खाद्य प्रसंस्करण विभाग भी है। इन्होंने इस संबंध में एक कार्य योजना तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। इस पहल के कई प्रत्यक्ष लाभ होंगे। जहां एक ओर इससे गैर सीजन के दौरान चीनी के गिरते दामों और अपनी संपत्तियों से धन प्राप्त करने में दिक्कत झेलने वाली चीनी कंपनियों को सहारा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर इससे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने के लिए सरकार के कार्यक्रम में सहायता मिलेगी।
 
उत्तर प्रदेश निवेशक सम्मेलन 2018 में राज्य को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 245 अरब रुपये के 637 निजी निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए थे, जिनमें से 47 उद्यमी पहले ही अपना प्रारंभिक आधारभूत कार्य पूरा कर चुके हैं। पिछले साल आदित्यनाथ सरकार ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने और निजी निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी खाद्य प्रसंस्करण नीति की घोषणा की थी। यूपी स्टेट शुगर मिल्स एसोसिएशन (उपस्मा) के सचिव दीपक गुप्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि चीनी उद्योग किसी भी ऐसे प्रस्ताव का समर्थन करेगा जिससे किसानों को लाभ पहुंचता हो और मिलों की व्यावसायिक संभावना को मजबूत करता हो, खासतौर पर चीनी के मौजूदा गिरते दामों और घरेलू बाजार में अधिकता के इस दौर में। उन्होंने दावा किया कि सरकार ने अभी तक चीनी उद्योग के साथ इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की है और जब विचार-विमर्श का आयोजन होगा तथा मिलों को रोडमैप से अवगत कराया जाएगा, तो उसके अनुसार आपसी सहमति बनाई जाएगी।
 
उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय भूसरेड्डïी ने भी चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले इस विचार का यह कहते हुए समर्थन किया कि दीर्घ अवधि में इससे राज्य के किसानों को लाभ मिलेगा। राज्य सरकार पहले ही मिलों को एकीकृत परिसरों में तब्दील करने के कार्यक्रम पर काम कर रही है जिसमें चीनी मिल, पॉवर कोजेनरेशन और डिस्टिलरी शामिल हैं। इस बीच, नॉर्थ इंडिया शुगरकेन ऐंड शुगर टेक्रॉलोजिस्ट्स एसोसिएशन (निस्टा) के उपाध्यक्ष अनिल कुमार शुक्ला ने कहा कि चीनी मिलों में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को एकीकृत करने का यह प्रस्ताव उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए वरदान साबित होगा, जो अपनी जोरदार फसलों से लाभ नहीं उठा पाए। उन्होंने कहा कि खाद्य प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना केलिए भारी निवेश की भी जरूरत नहीं होती है, जबकि स्थानीय स्तर पर इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
 
  

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