चीनी उद्योग को राहत देने के लिए सरकार चीनी पर 5 फीसदी उपकर लगाने, प्रति किलो करीब 4.5 रुपये उत्पादन से जुड़ी निर्यात सब्सिडी देने और एथेनॉल पर जीएसटी 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने पर विचार कर सकती है। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि गन्ना मिलों पर किसानों का बकाया 180 अरब रुपये से ऊपर पहुंच गया है जिसमें से अधिकांश राजनीतिक रूप से संवेदनशील उत्तर प्रदेश में है।
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में मंत्रियों की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने इन तीनों प्रस्तावों पर चर्चा की और इस बारे में जल्दी ही एक औपचारिक कैबिनेट नोट तैयार किया जा सकता है। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने समिति की बैठक के बाद कहा, 'हम जल्दी ही तीनों प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष रख सकते हैं।' किसानों का आरोप है कि उनकी करीब 20 फीसदी फसल अभी खेतों में ही खड़ी है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ मिलों ने पर्ची जारी करना बंद कर दिया है या फिर इन्हें बहुत धीमा कर दिया है।
पर्ची जारी करना बंद करने के कारण किसानों को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर गुड़ निर्माताओं को बेचना पड़ रहा है। पर्ची एक लिखित आश्वासन होता है जो मिलें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर गन्ना खरीदने के लिए अपने क्षेत्र के किसानों को जारी करती हैं।
2018-19 गन्ना विपणन सत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की सामान्य किस्म की कीमत 315 रुपये प्रति क्विंटल और पहले बोई जाने वाली किस्मों के लिए 325 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की थी। लेकिन गुड़ बनाने वाले स्थानीय इकाइयां करीब 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर किसानों से गन्ना खरीद रही हैं।
हालांकि वे नकद भुगतान करती हैं जबकि बढ़ते बकाये के कारण चीनी मिलों से भुगतान में देरी हो रही है। यही कारण है कि किसानों को अपने खेतों को खाली करने के लिए गन्ना कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है। राज्य सरकार ने मिलों के लिए किसानों का सारा गन्ना खरीदना अनिवार्य कर रखा है लेकिन बंपर फसल के कारण चीनी की एक्स मिल कीमतों में भारी गिरावट आई है। इससे मिलें किसानों को समय पर भुगतान नहीं कर पा रही हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने कुछ दिन पहले एक बयान में कहा था, 'उत्पादन और आपूर्ति में वृद्घि के कारण चीनी की कीमतों पर काफी दबाव है। चीनी की उत्पादन लागत की तुलना में इसका एक्स-मिल दाम प्रति किलोग्राम करीब करीब 8 रुपये कम है।' उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का करीब 11,000 करोड़ रुपये का बकाया है।
सूत्रों ने कहा कि इसमें से अधिकांश राशि चार से पांच बड़ी चीनी मिलों पर बकाया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में गन्ना उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर चीनी मिलों पर द्वारा गन्ना बकाया भुगतान में चूक करने पर सख्त कार्रवाई करने तथा किसानों का बकाया भुगतान समय पर सुनिश्चित कराने को कहा था। सहकारी चीनी मिलों के संगठन राष्ट्रीय सहकारी चीनी फैक्टरी संघ के साथ ही इस्मा ने सरकार से कम से कम 20 से 30 लाख टन चीनी निर्यात के लिए तत्काल 1,000 रुपये प्रति क्विंटल सब्सिडी देने की घोषणा करने की मांग की थी।
उनका कहना था कि घरेलू बाजार में कीमतें तेजी से गिर रही हैं, जिससे मिलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इंडिया रेटिंग्स ने एक नोट में कहा, 'अंतरराष्ट्रीय कीमतें घरेलू कीमतों से करीब 25 से 30 फीसदी कम है, इसकी वजह से भारतीय मिलों को चीनी के निर्यात पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान हो रहा है। ऐसे में निर्यात व्यवहार्य नहीं रह गया है।'