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चेतावनी से चीनी उद्योग चिंतित
Date: 17 Apr 2018
Source: The Business Standard
Reporter: Dilip Kumar Jha
News ID: 30030
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गन्ना किसानों के बढ़ते बकाया को लेकर केंद्र सरकार की चीनी मिलों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी से चीनी की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है। केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने कहा है कि उन्होंने पिछले सप्ताह चीनी उत्पादक प्रमुख राज्यों की सरकारों को पत्र लिखा है और गन्ना किसानों का बकाया न चुकाने वाली मिलों पर कड़ी कार्रवार्ई करने को कहा है। पासवान के बयान के बाद देशभर में चीनी की कीमतें 1 से 1.5 रुपये प्रति किलोग्राम घट गई हैं। मिलों का कहना है कि वे इस समय 26 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर चीनी बेच रही हैं, जो अक्टूबर, 2017 में चालू पेराई सीजन की शुरुआत के समय की कीमतों से 5 से 6 रुपये प्रति किलोग्राम कम है। इसके अलावा वर्तमान कीमतें चीनी की औसत उत्पादन लागत से करीब 10 रुपये प्रति किलोग्राम कम हैं। 
 
अगर यह मानकर चलते हैं कि मिलों को 6 रुपये प्रति किलोग्राम की आमदनी उपोत्पादों (शीरा, रेक्टिफाइड स्पिरिट और एथेनॉल आदि) और बिजली उत्पादन से हो जाती है, तब भी 4 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान हो रहा है। चालू सीजन में और अगले सीजन में चीनी का उत्पादन इस जिंस की खपत से करीब 20 फीसदी अधिक रहने का अनुमान है, जिससे चीनी की कीमतों में और गिरावट के आसार हैं। चीनी की कीमतें जल्द ही कम से कम 1 रुपये और घटने का अनुमान है।  महाराष्ट्र सहकारी चीनी फैक्टरी राज्य संघ के प्रबंध निदेशक संजदय खातल ने कहा, 'दिनोदिन चीन संकट बढ़ता जा रहा है क्योंकि मिलों को चीनी के मिलने वाले दाम घटते जा रहे हैं। केंद्रीय खाद्य मंत्री के राज्यों को मिलों पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश देने से भारी मात्रा में खरीदारी का रुझान प्रभावित हुआ है क्योंकि कारोबारियों ने केवल हाजिर मांग पूरी करने के लिए खरीदारी करना शुरू कर दिया है। उन्हें पता है कि मिलें किसानों के बढ़ते बकाया का भुगतान करने के लिए अपनी चीनी बेचने के लिए दबाव में हैं। इस वजह से स्टॉकिस्ट और बड़े खरीदार कम कीमतों पर खरीदारी की उम्मीद में अभी स्टॉक करने से बच रहे हैं। इस तरह केंद्रीय मंत्री के निर्देशों से मिलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।'
 
इस बीच देशभर में गन्ना का बकाया करीब 180 अरब रुपये पर पहुंचने का अनुमान है, जिसमें से महाराष्ट्र की मिलों का हिस्सा सबसे अधिक 23.50 अरब रुपये है। महाराष्ट्र की चीनी मिलें, विशेष रूप से सहकारी मिलें मुश्किल हालातों का सामना कर रही हैं। अगर सरकार अतिरिक्त चीनी को खपाने का इंतजाम नहीं कर पाई तो मिलों की स्थिति और खराब होगी।  इस क्षेत्र की शीर्ष संस्था भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने चालू सीजन में 295 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान जताया है, जबकि खपत 250 से 260 लाख टन रहने का अनुमान है। पिछले साल की 40 लाख टन चीनी बची है, जिससे कुल सरप्लस 75 से 80 लाख टन पर पहुंच सकता है। 
 
इस बीच सरकार ने चीनी मिलों को सितंबर तक न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा के तहत संयुक्त रूप से 20 लाख टन चीनी के निर्यात का निर्देश दिया है। लेकिन मिलों को यह असंभव नजर आ रहा है क्योंकि वैश्विक बाजारों में भी चीनी के दाम गिर रहे हैं।  ब्राजील और यूरोपीय संघ से ज्यादा आपूर्ति के कारण वैश्विक बाजारों में चीनी के दाम तेजी से घटे हैं, जिससे भारत से निर्यात करना घाटे का सौदा है। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'उद्योग 55 से 60 लाख टन चीनी के सरप्लस स्तर पर पहुंच गया है। अगर सरकार ने कुछ प्रोत्साहनों से उद्योग को मदद नहीं की तो इस सरप्लस चीनी को खपाना बहुत असंभव होगा।'
 
महाराष्ट्र की मिलों ने सरकार से आग्रह किया है कि चीनी का न्यूनतम भाव 32 रुपये प्रति किलोग्राम तय करने के लिए आवश्यक जिंस अधिनियम का इस्तेमाल किया जाए। खताल ने कहा, 'मौजूदा संकट में अपना वजूद बचाने का यह मिलों के पास एकमात्र समाधान है। यह संकट आगे और बढऩे के आसार हैं क्योंकि अगले सीजन में 300 लाख टन उत्पादन का अनुमान है।' विशेषज्ञों का कहना है कि मिलें कार्यशील पूंजी जुटाने के लिए पहले ही ऋणदाताओं के पास अपने स्टॉक को गिरवी रख चुकी हैं। अगर वे समय पर भुगतान नहीं कर पाती हैं तो उन्हें बकाया राशि पर 2 फीसदी जुर्माना देना होगा। इसका मतलब है कि आगे और समस्याएं आएंगी। 
 
  

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