नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। बकाया को लेकर गन्ना उत्पादक राज्यों में राजनीतिक घमासान तेज होने की संभावना बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की बकायेदारी सबसे ज्यादा है, जबकि महाराष्ट्र व कर्नाटक में भी बकाया भुगतान नहीं हो पाने से गन्ना किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राजनीतिक दल किसानों की समस्याओं को गंभीर मुद्दे में बदलने की जुगत में हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में यह राजनीतिक मसला हो चुका है, जबकि यूपी में कैराना के संसदीय चुनाव से पहले ही राज्य सरकार पर भुगतान का दबाव बनने लगा है।
घरेलू बाजार से लेकर वैश्विक बाजार तक चीनी का मूल्य उसकी उत्पादन लागत के मुकाबले कम चल रहा है। इससे चीनी मिलों पर गन्ने के बकाये का बोझ बढ़ रहा है। नतीजा यह हुआ कि मिलें किसानों को उनके गन्ने का वाजिब मूल्य देने में नाकाम हो रही हैं। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में गन्ने का मूल्य अधिक होने की वजह से यहां की चीनी मिलों की समस्याएं सबसे अधिक हैं।
31 मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ने की बकायेदारी बढ़कर 8,282 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। महाराष्ट्र और कर्नाटक की चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, बिहार और तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया चार हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग और गन्ना किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं। राज्य सरकार यह कहकर अपनी पीठ ठोक रही है कि उसने गन्ना किसानों का 26 हजार से अधिक का भुगतान निर्धारित 14 दिन की अवधि में पूरा कर दिया। कुल 69 फीसद बकाया का भुगतान कर दिया गया है।
चीनी मिल मालिकों ने राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर समस्या का समाधान करने का आग्रह किया है। उन्होंने चीनी उद्योग के संरक्षण का उपाय भी सुझाया है। इसके तहत मिलों ने कहा है कि राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) और मिलों की लागत के बीच के अंतर के रूप में 40 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से राज्य सरकार गन्ना किसानों के बैंक खाते में जमा कराए। इसके साथ राज्य सरकार बफर स्टॉक बनाए, जिससे उद्योग के हाथ में नकदी आए और वह गन्ना किसानों का भुगतान कर सके।’