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चार फीसदी अधिक रहेगा चीनी उत्पादन
Date: 19 Jan 2018
Source: Business Standard
Reporter: दिलीप कुमार झा
News ID: 29765
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बढिय़ा मॉनसून के चलते गन्ने की बेहतर उपज होने से पेराई सत्र 2017-18 में चीनी का उत्पादन पूर्व-घोषित लक्ष्य से चार फीसदी अधिक रहने का अनुमान है। मौजूदा सत्र के पहले तीन महीनों में बढ़े हुए उत्पादन को देखते हुए पूरे सत्र में 2.61 करोड़ टन उत्पादन होने की संभावना है।  भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने अक्टूबर 2017 से लेकर सितंबर 2018 तक चलने वाले पेराई सत्र के लिए गुरुवार को अपना संशोधित अनुमान जारी किया। उसने बताया कि पहले 2.51 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान रखा गया था लेकिन पेराई सत्र के पहले तीन महीनों में ही बेहतर नतीजे आने से इस अनुमान को संशोधित किया जा रहा है। इस सीजन में चीनी का उत्पादन पिछले अनुमान से करीब चार प्रतिशत अधिक रहने का अनुमान है। 
 
अगर चीनी उत्पादन इस स्तर तक पहुंचता है तो भारत चीनी उत्पादन के मामले में अधिशेष वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा जबकि फिलहाल उसका दर्जा संतुलित चीनी उत्पादन वाले देश का है। गौरतलब है कि भारत की सालाना चीनी खपत करीब 2.50 करोड़ टन है। ऐसे में 10 लाख टन का अतिरिक्त उत्पादन होने से चीनी मिलों की आर्थिक सेहत पर विपरीत असर पड़ सकता है। दरअसल पहले से ही करीब 40 लाख टन चीनी का पुराना स्टॉक रखा हुआ है। अगर सरकार चीनी के निर्यात की इजाजत नहीं देती है तो 2018-19 के चीनी सत्र में कुल पुराना स्टॉक बढ़कर करीब 50 लाख टन हो जाएगा। अगले पेराई सत्र में चीनी उत्पादन 2.9-3.0 करोड़ टन तक रहने का अनुमान है। 
 
इस्मा के मुताबिक गन्ने की उपज वाले क्षेत्रों की उपग्रह से ली गई तस्वीरों से पता चलता है कि गन्ने की फसल के अनुपात में चीनी उत्पादन कहीं बेहतर रहा है लिहाजा पेराई सत्र के लिए अनुमान संशोधित किया जा रहा है।  चीनी उद्योग की एक और संस्था अखिल भारतीय चीनी कारोबारी संघ ने भी पहले उत्पादन के 2.57-2.61 करोड़ टन रहने का अनुमान जताया था। पिछले साल चीनी मिलों ने करीब 2.46 करोड़ टन चीनी बेची थी। इस्मा का मानना है कि अतिरिक्त उत्पादन होने से चीनी का निर्यात करने की पर्याप्त गुंजाइश होगी। लेकिन सरकार के स्तर पर निर्यात की इजाजत दिए जाने की संभावना कम ही नजर आ रही है। इसकी वजह यह है कि तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में गन्ने की कम उपज होने से वहां चीनी की किल्लत हो सकती है।
 
वैसे 2016-17 के विपणन वर्ष में उत्पादन गिरकर 2.03 करोड़ टन पर पहुंचने के बाद भारत को चीनी का आयात करना पड़ा था। पिछले साल आठ लाख टन कच्ची चीनी आयात करने के पीछे तमिलनाडु और कर्नाटक में आपूर्ति बनाए रखने का ही मकसद था।  इसके अलावा चीनी उत्पादन बढऩे का यह असर भी हो सकता है कि चीनी मिलों की मुनाफा कमा पाने की क्षमता और कम हो जाए। इस सत्र में प्रति किलो चीनी की लागत करीब 37 रुपये रहेगी जबकि पिछले पेराई सत्र में यह 33.5 रुपये प्रति किलो रही थी। मजदूरी बढऩे और सरकारी शुल्क बढऩे से चीनी मिलों को एक किलो चीनी उत्पादन से 30-31 रुपये ही मिल पा रहे हैं। इस तरह मिलों को एक किलो चीनी पर छह से सात रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है जो उनकी कार्यशील पूंजी को पलीता लगा सकता है।
 
इतना ही नहीं, बेहतर उत्पादन होने के बावजूद पड़ोसी देश पाकिस्तान से चीनी का आयात किए जाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल भारत सरकार पाकिस्तान से आयात किए जाने वाली चीनी पर प्रति किलो 11 रुपये का प्रोत्साहन देती है। पड़ोसी देश से 15 लाख टन चीनी आयात पर ही यह प्रोत्साहन मिलता है। भले ही भारत सरकार पाकिस्तान से मंगाई जाने वाली चीनी पर 50 फीसदी आयात शुल्क लगा देती है लेकिन उसके बाद भी पंजाब जैसे सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान से चीनी मंगवानी किफायती पड़ती है।
 
इस बीच भारत में घरेलू खपत से अधिक उत्पादन होने की संभावना के चलते चीनी मिलों ने बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ निर्यात की संभावनाएं तलाशने की मांग रखी है। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'अगर हम श्रीलंका और बांग्लादेश के बाजार का दोहन कर पाने में सफल रहते हैं तो अपनी अतिरिक्त चीनी को भी खपाने का तरीका निकाल लेंगे।'
 
  

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