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किसानों के लिए हो राजस्व साझेदारी फॉर्मूला
Date: 15 Dec 2017
Source: Business Standard
Reporter: भाषा
News ID: 27771
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सरकार की मूल्य परामर्शक संस्था सीएसीपी ने आज उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से कहा कि वे गन्ने का मूल्य तय नहीं करें। उसने चीनी उद्योग के विकास के लिए किसानों के भुगतान के लिए राजस्व साझेदारी फॉर्मूले को अपनाने को कहा।  कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा ने कहा कि चीनी उद्योग को गन्ने की तौल और चीनी पड़ता निर्धारित करने के लिए पारदर्शी प्रणाली बनानी चाहिए ताकि किसानों और चीनी मिलों के बीच बेहतर भरोसा बन सके। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के वार्षिक आम बैठक में शर्मा ने कहा कि हम राज्यों से बात कर रहे हैं और उनसे एफआरपी तथा राजस्व साझेदारी फॉर्मूले को अपनाने का अनुरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केवल महाराष्ट्र और कर्नाटक में अभी तक राजस्व साझेदारी फॉर्मूले को अपनाया है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि और भी राज्य जल्द ही इस फॉर्मूले को अपनाएंगे। 
 
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और बिहार प्रदेश परामर्शित मूल्य (एसएपी) को निर्धारित करना जारी रखे हैं जो केंद्र द्वारा निर्धारित किए जाने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) से कहीं अधिक होता है। छह और उत्पादक राज्य हैं जो एफआरपी का अनुपालन करते हैं। रंगराजन समिति ने अक्टूबर के महीने में सिफारिश की थी कि चीनी और कुछ चीनी के प्रतिउत्पादों से प्राप्त होने वाली आय के 75 प्रतिशत के लगभग गन्ने की कीमत को निर्धारित किया जाना चाहिए। गन्ने के मूल्य निर्धारण के बारे में शर्मा ने कहा कि सबसे मुश्किल प्रदेश परामर्शित (एसएपी) मूल्य से छुटकारा पाना है जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इसे वैज्ञानिक तरीके से निर्धारित नहीं किया जाता है और इससे दक्षता प्रोत्साहित नहीं होती है। 
 
सीएसीपी के अध्यक्ष ने कहा कि अगर राजस्व साझेदारी फॉर्मूले के तहत चीनी मिलों की आय एफआरपी से कम हो जाती है तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कोष स्वनिर्भरता वाला होना चाहिए और सरकार पर इसका कोई बोझ नहीं आना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीनी उद्योग, किसान और उपभोक्ता जैसे सभी अंशधारकों को इस कोष के लिए योगदान करना चाहिए। इस कोष की आवश्यकता तीन चार वर्ष में केवल एक बार हो सकती है। शर्मा ने कहा कि गन्ने की उत्पादकता की स्थिति में ठहराव है तथा मात्रा और चीनी प्राप्ति के संदर्भ में इस उत्पादकता को बढ़ाने की आवश्यकता है।  
 
  

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