उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को इस 2012-13 के मार्केटिंग ईयर में करीब 3,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इसकी वजह प्रोडक्शन की ऊंची कॉस्ट है। मिलों ने सरकार से गन्ने के रेट को चीनी की कीमतों से जोड़ने की मांग की है। चीनी मिलों को नुकसान होने की वजह से किसानों को गन्ने की कीमत का बकाया भी करीब 3,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। राज्य के मिल मालिकों ने अगले महीने से शुरू हो रहे 2013-14 के मार्केटिंग ईयर के लिए गन्ने का दाम 240 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा देने में असमर्थता जताई है। इस साल राज्य में इसकी कीमत 280 रुपए प्रति क्विंटल है। उत्तर प्रदेश के केन कमिश्नर को भेजे लेटर में यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन ने कहा है कि राज्य की चीनी मिलों को 2012-13 के मौजूदा मार्केटिंग ईयर में करीब 3,200 रुपए प्रति क्विंटल का एवरेज सेल्स रियलाइजेशन मिला है, जबकि उनकी प्रोडक्शन कॉस्ट 3,600 रुपए प्रति क्विंटल है। इस साल के लिए इंडस्ट्री का कुल नुकसान 3,000 करोड़ रुपए से ज्यादा होगा। इसमें कोऑपरेटिव सेक्टर भी शामिल है। नुकसान का अनुमान लगाने में शीरे जैसे बाय-प्रोडक्ट्स से मिलों के रियलाइजेशन को शामिल किया गया है। एसोसिएशन ने राज्य सरकार से रंगराजन कमेटी की सिफारिश के मुताबिक गन्ने की कीमत को चीनी के प्राइस से जोड़ने की अपील की है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डायरेक्टर जनरल अबिनाश वर्मा ने कहा, 'अगर गन्ने और चीनी के दाम में कोई लिंकेज नहीं होगा, तो बैंक वर्किंग कैपिटल के लिए मिलों को लोन नहीं देंगे।' उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के लिए प्रोडक्शन कॉस्ट ज्यादा है, क्योंकि राज्य सरकार हर साल गन्ने के लिए एसएपी तय करती है, जो केंद्र के फेयर एंड रेम्युनरेटिव प्राइस (एसएपी) से काफी अधिक है। 2012-13 के लिए एफआरपी 170 रुपए प्रति क्विंटल है। एसोसिएशन ने राज्य सरकार से 2013-14 के लिए एसएपी मिलों के लिए गन्ने के रिजर्वेशन के प्रपोजल से पहले घोषित करने को कहा है। महाराष्ट्र के बाद शुगर प्रोडक्शन के मामले में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है। 2012-13 के मार्केटिंग ईयर में देश में 2.5 करोड़ टन चीनी का प्रोडक्शन हुआ, जिसमें उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 74 लाख टन की थी।