केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने आपूर्ति और निपटान महानिदेशालय (डीजीएसडी) के जरिये जूट के बोरों की खरीदारी की तीन दशक पुरानी व्यवस्था को खत्म करने का फैसला किया है। मगर जूट उद्योग ने इसका विरोध किया है। खरीद प्रणाली में यह बदलाव 1 नवंबर से लागू हो जाएगा। इसके तहत जूट के बोरों की खरीदारी जूट आयुक्त का कार्यालय करेगा। अगर नई व्यवस्था पर अमल होता है तो जूट आयुक्त कार्यालय खाद्य एजेंसियों को आपूर्ति के लिए जूट बोरों की खरीदारी के अलावा जूट उत्पादन नियंत्रण और आपूर्ति ऑर्डर भी जारी करेगा।
कपड़ा सचिव जोहरा चटर्जी को हाल में लिखे एक पत्र में केंद्रीय वाणिज्य सचिव एस आर राव ने कहा, 'डीजीएसडी ने पिछले तीन दशकों से बिना किसी वैधानिक समर्थन या शासन आदेश के बगैर जूट बोरों की खरीदारी की है। खाद्यान्न को लाने-ले जाने के लिए जूट बोरे संवेदनशील उत्पाद हैं। इसलिए इस पर दर अनुबंध या निविदा की अनुमति नहीं दी गई है। जूट आयुक्त उत्पादन, मूल्य निर्धारण, आपूर्ति और नियंत्रण जैसे सभी जूट मामलों से निपटने वाली संस्था है।Ó
राव ने अपने पत्र में कहा है, 'वाणिज्य मंत्रालय ने 1 नवंबर से जूट बोरों की खरीदारी में डीजीएसडी की सेवा समाप्त करने का प्रस्ताव रखा है।Ó मंत्रालय का मानना है कि जूट आयुक्त का कार्यालय जूट मामलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त एकमात्र अधिकृत संस्थान है।
जूट उद्योग ने इस पहल का विरोध किया है। उद्योग का तर्क है कि नई व्यवस्था के तहत काम करना आसान नहीं होगा और इसके परिणामस्वरूप उद्योग को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन राघव गुप्ता ने कहा, 'उस मौजूदा व्यवस्था में बदलाव करना समझदारी नहीं है जो पिछले 30 वर्षों से चली आ रही है। वाणिज्य मंत्रालय को कोई फैसला लेने से पहले संबद्घ हितधारकों के साथ परामर्श करना चाहिए।
नई व्यवस्था पर न केवल मुश्किल होगा और न ही इससे जूट उद्योग को खास फायदा होगा। नई व्यवस्था पर अमल समय खर्च करने वाली प्रक्रिया हो सकती है और ऐसी सूरत में जूट उद्योग समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होगा। साथ ही इससे प्लास्टिक बैग निर्माताओं का भी शोषण होगा। यह संगठन नई खरीद व्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज पहले ही उठा चुका है।Ó
हालांकि जूट आयुक्त कार्यालय ने नई व्यवस्था का स्वागत किया है। उसका तर्क है कि जूट बोरों की खरीदारी के लिए डीजीएसडी की जरूरत नहीं थी, क्योंकि मौजूदा कार्य प्रणाली से जूट बोरों की की गहन जांच के कारण अनावश्यक खर्च को बढ़ावा मिल रहा था।