सूबे की चीनी मिलें वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है। गत वर्ष की तुलना में करीब चार सौ लाख टन गन्ना अधिक पेराई के बाद भी मिलें तीन हजार करोड़ रुपये के घाटे में बतायी जा रही है। किसानों की 3814 करोड़ रुपये की देनदारी है। करीब एक दर्जन मिल संचालक आगामी सत्र में पेराई न करने का एलान कर चुके है। कोर्ट की सख्ती और सरकार के डंडे के बावजूद बकाया गन्ना भुगतान की रफ्तार बेहद सुस्त है।
चीनी मिलों के बिगड़े वित्तीय हालात गन्ना किसानों के लिए खतरे की घटी है, क्योंकि कैश क्राप मानी जाने वाले एक हेक्टेयर गन्ने से लगभग 75 हजार रुपये प्रतिवर्ष किसान को मिलते है। इसके मुकाबले गेहूं व धान की संयुक्त खेती से प्रति हेक्टयर 45 हजार रुपये की उपज हो पाती है। चीनी मिलों की सेहत को न संभाले रखा तो उप्र और अधिक पिछड़ जाएगा।
आंकड़े गवाह है कि यूपी का चीनी उद्योग महाराष्ट्र व कर्नाटक जैसे राज्यों से पिछड़ता जा रहा है। कम गन्ना होने के बाद भी उक्त राज्यों की चीनी मिलों के आर्थिक हालात बेहतर है। इस वर्ष महाराष्ट्र की मिलों की स्थिति को लें। वहां 60.49 मिलियन टन गन्ना पेराई करके 80 लाख टन चीनी बनायी। वहीं यूपी के किसानों ने मेहनत कर देश में सर्वाधिक 130 मिलियन टन गन्ना पैदा किया परन्तु मिलें 75 लाख से ज्यादा चीनी उत्पादन नहीं कर सकी। उत्पादन में पिटी प्रदेश की चीनी मिलें किसानों का गन्ना मूल्य भुगतान करने में भी फिसड्डी साबित होती रही है। विगत वर्ष 2012 को छोड़ दें तो देनदारी की स्थिति गंभीर बनी रही है। पिछले आठ वर्षो में महाराष्ट्र व यूपी के मिलों की भुगतान की स्थिति पर नजर डाली जाए तो अंतर साफ दिखता है। महाराष्ट्र में 75 से 80 प्रतिशत भुगतान आमतौर से होता रहा है परन्तु उत्तर प्रदेश में तमाम कोशिशों के बाद भी औसत 60 फीसद देनदारी समय से चुकता नहीं हो पाती। महाराष्ट्र में गन्ने से चीनी रिकवरी का औसत 11.32 फीसद है वहीं यूपी में 9.19 प्रतिशत से अधिक परता नहीं मिल पाता। यहीं वजह है कि महाराष्ट्र की चीनी मिलें यूपी की तुलना में आधे से कम गन्ना पेराई करके ज्यादा चीनी उत्पादन कर रही है।
यूपी शुगर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सचिव दीपक गुप्तारा का कहना है कि प्रदेश में चीनी उद्योग पिटने की अनेक वजह गिनाई जा सकती है परन्तु सबसे अहम गन्ना मूल्य निर्धारण प्रक्रिया का दोषपूर्ण होना है। गन्ना समर्थन मूल्य तय करते समय चीनी उद्योग की स्थिति का ध्यान नहीं रखा जाता। मुक्त बाजार के जमाने में सस्ता आयात संकट की सर्वाधिक मार चीनी उद्योग पर पड़ती है। रंगराजन समिति की रिपोर्ट महाराष्ट्र एवं कर्नाटक की तरह यूपी में भी लागू होनी चाहिए।
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इनका कहना है
चीनी उद्योग को ताकत देने के लिए राज्य सरकार गंभीर है। नई नीति लागू करने के साथ कई अन्य रियायतें भी दी जा रही है। आने वाले पांच वर्ष में बीज बदलाव करके गन्ना उत्पादन बढ़ा कर 70 टन प्रति हेक्टेयर करने व चीनी परता 10.7 प्रतिशत करने का लक्ष्य है।
-राहुल भटनागर, प्रमुख सचिव चीनी उद्योग व गन्ना विकास
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गत दो पेराई सत्र में भुगतान का तुलनात्मक अंतर
16 जुलाई 2013 को बकाया करोड़ में
चीनी मिलें अवशेष रकम
सहकारी-23 183.07
निजी क्षेत्र-98 3631.76
कुल- 121 3814.83
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16 जुलाई 2012 को बकाया करोड़ में
सहकारी मिलें 166.49
निजी क्षेत्र 1877.57
कुल योग 2044.06