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चीनी उद्योग बनेगा निर्यातोन्मुखी
Date: 02 Sep 2017
Source: Business Standard
Reporter: दिलीप कुमार झा
News ID: 22653
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इस साल बहुत सी चीनी मिलें गन्ना पेराई जल्द शुरू करने की योजना बना रही हैं, जिससे देश के कुछ हिस्सों में चीनी की किल्लत दूर करने में मदद मिलेगी। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री सीआर चौधरी ने आज यह बात कही। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने इस साल पहली बार अक्टूबर में गन्ने की पेराई शुरू करने का फैसला किया है। भारत के इस सबसे बड़े चीनी उत्पादन राज्य में मिलें अमूमन नवंबर में उस समय पेराई शुरू करती हैं। हालांकि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में मिलें अक्टूबर के मध्य में ही पेराई शुरू कर देती हैं। 
 
इस क्षेत्र की शीर्ष संस्था भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) द्वारा हाल में किए गए एक सर्वेक्षण में दर्शाया गया है कि देशभर की सभी मिलें अक्टूबर में कुल 8 लाख टन चीनी उत्पादित करेंगी। इस साल अक्टूबर महीने का उत्पादन नया मासिक रिकॉर्ड बना सकता है। आज शुरू हुए तीन दिवसीय कार्यक्रम 'एआईएसटीए शुगर कॉनक्लेव 2017' से इतर बोलते हुए चौधरी ने कहा कि सरकार भारत के चीनी उद्योग को निर्यातोन्मुखी बनाने पर ध्यान दे रही है, न कि आयातोन्मुखी। इसके लिए सरकार को किसानों, मिलों और उपभोक्ताओं के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। यह संतुलन न होने की वजह से दिक्कतें आती हैं। 
 
सरकार का मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना है कि गन्ना किसानों को पूरा और समय से भुगतान मिले। चौधरी ने कहा, 'चीनी मिलों पर वर्ष 2014 में गन्ने की खरीद के 21,837 करोड़ रुपये बकाया थे, जिसमें से 99 फीसदी का अब तक भुगतान हो चुका है। पेराई सीजन 2016 और 2017 की राशि अब भी बकाया है, जिसका भुगतान कराने की सरकार कोशिश कर रही है।' उन्होंने कहा कि किसानों को गन्ने की अच्छी कीमत दी जानी चाहिए ताकि उनके लिए इसकी पैदावार करना फायदेमंद हो। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि वे तिलहन या दलहन जैसी अन्य फसलों का रुख नहीं करेंगे। 
 
अब किसान इतने समझदार हैं कि वे पिछले सीजन में अच्छी कीमत देने वाली फसल की तरफ रुख कर लेते हैं। इस तरह सरकार चीनी उद्योग को निर्यातोन्मुखी और कीमतों में स्थिरता चाहती है। चौधरी ने कहा कि सरकार के सामने तीन मुख्य चुनौतियां हैं। किसानों को समय पर और उचित कीमत मिले, मिलों को अपना कारोबार चलाने के लिए पर्याप्त लाभ हो और उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर चीनी मिले। 
 
मंत्री ने कहा, 'सरकार दैनिक आधार पर चीनी की थोक और खुदरा कीमतों पर निगरानी रख रही है। हमने पाया है कि थोक कीमत 35 रुपये प्रति किलोग्राम है, लेकिन खुदरा कीमत 44 रुपये प्रति किलोग्राम है। इतना बड़ा अंतर क्यों है? हमने पाया है कि खुदरा विक्रेता स्टॉक कर रहे हैं और बाजार में उचित मात्रा में चीनी नहीं आने दे रहे हैं।' इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने मिलों पर सितंबर और अक्टूबर महीनों के लिए स्टॉक सीमा लगा दी है। हालांकि नवंबर में नए सीजन की चीनी की आपूर्ति शुरू हो जाएगी। इस मौके पर संबोधित करते हुए एआईएसटीए के चेयरमैन प्रफुल विठालानी ने कहा कि इस एसोसिएशन का गठन एक साल पहले हुआ था, जिसका मकसद किसान, मिलों, कारोबारियों और अन्य भागीदारों सहित चीनी उद्योग की पूरी मूल्य शृंखला की आवाज बनना था। 
 
  

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