राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने गन्ने की खोई से जैव-डिटर्जेंट विकसित करने की नई तकनीक के पेटेंट के लिए आवेदन किया है। संस्थान के निदेशक डॉ. नरेंद्र मोहन ने बताया कि खोई से डिटर्जेंट पाउडर बनाने में किसी रसायन का उपयोग नहीं होता, इसलिए यह उपयोगकर्ता की त्वचा के लिए सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है। मोहन ने कहा कि इस डिटर्जेंट की खास बात यह है कि इससे कपडे धोने में पानी कम लगता है और कपड़े के रंग या मजबूती पर कोई असर नहीं पडता। मात्र 20 रुपये के कच्चे माल से खोई का एक किलो डिटर्जेंट तैयार किया जा सकता है। गन्ने की खोई का इस्तेमाल अभी तक चीनी मिलों में बिजली उत्पादन के लिए जैव ईंधन के रूप में किया जाता है। भारत, चीन, कोलंबिया, ईरान, थाईलैंड और अर्जेन्टीना जैसे राष्ट्रों में यह कड़ी के विकल्प के रूप में भवन निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल होता है। सौर ऊर्जा सस्ती होने के बाद गन्ने की खोई से बिजली उत्पादन व्यावहारिक नहीं रह गया है।