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चीनी वायदा से कारोबारियों का मोहभंग
Date: 08 Aug 2017
Source: The Business Standard
Reporter: सुशील मिश्र
News ID: 22583
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              सरकार ने चीनी वायदा पर कोई बंदिश भले ही नहीं लगाई हो लेकिन कारोबारियों का वायदा कारोबार से मोहभंग हो रहा है। पिछले साल रोजाना करीब 200 से 280 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाला चीनी वायदा आज सिकुड़ कर 10 से 20 लाख रुपये रह गया है। लगभग हर महीने सरकार के दखल और नियमों में बदलाव के चलते चीनी वायदा कारोबारियों के लिए बेकार साबित हो रहा है। कारोबारी अब दबी जुबान से चीनी वायदा कारोबार बंद होने की आशंका भी जताने लगे हैं। 

 
पिछले साल तक तेजी से फलफूल रहा चीनी वायदा कारोबार आज घटकर एक करोड़ रुपये से नीचे चला गया है। एनसीडीईएक्स में कल चीनी का कुल वायदा कारोबार 67 लाख रुपये का हुआ और कुल छह सौदे ही हुए। एनसीडीईएक्स में अप्रैल 2016 में हर दिन औसतन 185.7 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा था। चीनी वायदा में हर दिन करीब 3,145 सौदे हो रहे थे और 1,44,707 टन के खड़े सौदे देखने को मिल रहे थे। अप्रैल 2016 के बाद चीनी वायदा से कारोबारियों का मोहभंग शुरू हुआ। जुलाई 2017 में दैनिक कारोबार गिरकर औसतन 20 लाख रुपये रह गया। औसतन सौदों की संख्या पांच और ओपन इंट्रेस्ट (खड़े सौदे) 323 टन रह गया। एक साल पहले हर दिन हजारों सौदे होते थे जो अब दो अंक तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस साल जून में हर दिन तीन सौदे, जुलाई में पांच सौदे और अगस्त में करीब छह सौदे हो रहे हैं। अप्रैल 2016 में हर दिन चीनी वायदा में 3,145 सौदे होते थे। 
 
चीनी वायदा में दिलचस्पी घटने की वजह सरकारी हस्तक्षेप को माना जा रहा है। ऐंजल कमोडिटी के रितेश साहू कहते हैं कि कोई भी कारोबार बंदिशों में नहीं होता है। अप्रैल 2016 के बाद सरकार ने करीब हर महीने नियमों में बदलाव किये हैं। कीमतें कम या ज्यादा होने पर सरकार बंदिशें लगाने लगती है। एक तरीके से सरकार ने चीनी की कीमतें 30 से 40 रुपये के बीच में तय कर दी हैं, इनके बीच में ही कारोबार करना होगा। ऐसे में वायदा कारोबार से लोगों की दिलचस्पी घटने लगी है। सच्चाई तो यह है कि अब चीनी वायदा कारोबार नाममात्र का बचा है। कारोबारियों को वायदा से बेहतर हाजिर कारोबार लग रहा है जो मांग और आपूर्ति के नियम पर चल रहा है। 2016 के बाद कभी आयात में रोक तो कभी निर्यात पर रोक लगाई गई। स्टॉक लिमिट और वायदा बाजार में मार्जिन ने कारोबार खत्म कर दिया है।
 
चीनी की कीमतों में तेजी और कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार ने अप्रैल 2016 में चीनी पर छह महीने के लिए स्टॉक लिमिट लगा दी थी। ऐसा पहली बार हु्आ था जब सरकार ने एक ही बार में छह महीने की स्टॉक लिमिट लगाई थी। सरकार ने कारोबारियों की मांग को ठुकराते हुए एनसीडीईएक्स के गोदामों पर भी यह लिमिट लागू करने की बात कहीं। इसके बाद कारोबारियों का चीनी वायदा से मोहभंग होने लगा है। इसके बाद सरकार ने अप्रैल 2016 के अंत में ही आयात शुल्क 25 से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया। मई 2016 में निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगाया गया। अगस्त 2016 में चीनी वायदा पर प्रतिबंध की बात की गई। सितंबर 2016 में मिलों पर भी स्टॉक लिमिट लागू की गई। सितंबर में एनसीडीईएक्स ने 25 फीसदी का स्पेशल कैश मार्जिन लागू कर दिया। 
 
इस साल एक जुलाई से देश में जीएसटी लगा तो चीनी पर भी पांच फीसदी जीएसटी लगया गया। घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें न बढ़े इसके लिए सरकार ने पिछले महीने आयात शुल्क बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया। कारोबारियों की मानी जाए तो चीनी सीधे किसानों से जुड़ी कमोडिटी है और इसकी कीमतें आम लोगों को तुरंत प्रभावित करती है जो राजनीतिक मुद्दा बन जाता है। लिहाजा, सत्ता पक्ष अपने वोटबैंक को बचाने के लिए तत्काल बंदिशें लागू कर देता है। सरकार यानी सेबी ने चीनी वायदा पर भले ही रोक नहीं लगाई है लेकिन कारोबारियों का इससे मोहभंग हो गया है।
 
  

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