अधिसूचना जारी, पर दो वर्ष के बाद समीक्षा का जिक्र नहीं केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को आंशिक रूप से नियंत्रणमुक्त करने की अधिसूचना तो जारी कर दी है लेकिन इसमें दो वर्ष की अवधि के बाद की जाने वाली समीक्षा को कोई जिक्र नहीं किया गया है। चार अप्रैल को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में शर्तों के साथ चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने का फैसला किया गया था, जिसमें कहा गया कि दो साल के बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी।
खाद्य मंत्रालय द्वारा 2 मई को जारी अधिसूचना के अनुसार सरकार ने चीनी मिलों से लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त कर दी है, साथ ही रिलीज मैकेनिज्म को भी समाप्त कर दिया गया है। लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त करने से चीनी उद्योग को तो सालाना करीब 3,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा लेकिन इससे केंद्र सरकार पर करीब 5,300 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी का भार पड़ेगा। घरेलू बाजार में चीनी बेचने की आजादी मिलों की होगी।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में आवंटन के लिए लेवी चीनी की खरीद राज्य सरकारें खुले बाजार से करेंगी तथा सब्सिडी की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अगुवाई में गठित चीनी डीकंट्रोल पर विशेषज्ञ समिति ने चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने की सिफारिश की थी।
सीसीईए की बैठक में राज्य सरकारों द्वारा खुले बाजार से चीनी खरीदने का अगले दो साल तक दाम 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है तथा पीडीएस में चीनी का आवंटन 13.50 रुपये प्रति किलो की दर से ही किया जाएगा। अभी तक चीनी मिलों को चीनी के कुल उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा लेवी चीनी के रूप में देना अनिवार्य था तथा देश में लेवी चीनी की सालाना खपत करीब 27 लाख टन की होती है।