नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चीनी उद्योग को उसकी मुंहमांगी मुराद मिल गई है। उस पर लगे सभी सरकारी नियंत्रण हटा लिए गए हैं। अब न मिलों से लेवी चीनी वसूली जाएगी और न ही खुले बाजार में चीनी बेचने पर कोई रोक-टोक होगी। राशन प्रणाली की सस्ती चीनी का बोझ केंद्र सरकार खुद उठाएगी। इसका कुछ बोझ बाद में राज्यों को भी उठाना पड़ेगा। सरकार के इस कदम से चीनी उद्योग को 3,000 करोड़ रुपये का सीधा फायदा होगा। मगर इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकाकर भुगतनी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति [सीसीईए] की बैठक में खाद्य मंत्रालय के मसौदे पर मुहर लग गई है। यह फैसला चालू पेराई सत्र अक्टूबर 2012 से ही लागू हो गया है। इस फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री केवी थॉमस ने बताया कि मिलों से उनके कुल उत्पादन का 10 फीसद लेवी के रूप में रियायती दर पर वसूला जाता था। यह चीनी राशन प्रणाली के मार्फत गरीब उपभोक्ताओं को 13.50 रुपये प्रति किलो की दर से बेची जाती है। सरकार ने लेवी प्रणाली को हटा लिया है। राज्य अब अपनी खपत के हिसाब से खुले बाजार से चीनी 32 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदकर 13.50 रुपये की दर से राशन दुकानों से बेच सकेंगे। मूल्यों के बीच के इस अंतर की भरपाई केंद्र सरकार करेगी।
खुले बाजार से चीनी खरीदने का 32 रुपये प्रति किलो का यह मूल्य अगले दो सालों के लिए फिक्स है। इन दो सालों में केंद्र पर कुल 5300 करोड़ रुपये का बोझ आने का अनुमान है। बाजार में चीनी के मूल्य बढ़ने पर आने वाला अतिरिक्त खर्च राज्यों को वहन करना होगा। खुले बाजार में मिलों को चीनी बेचने पर लगी पाबंदी भी हटा ली गई है। अब वे बाजार में मांग व आपूर्ति के सिद्धांत के तहत अपने मनमाफिक चीनी बेच सकेंगे। चीनी उद्योग की यह बहुत पुरानी मांग थी, जिसे सरकार ने मान लिया है। गन्ना क्षेत्र आरक्षण के प्रावधान को राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है।