करीब ढाई हजार किसान बहुत ही शांति के साथ धरने पर बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि राज्य सरकार न्यायालय द्वारा उनके पक्ष में दिये गये फैसले को लागू करेगी। इसलिए 14वें दिन भी वह यहां पर हैं। धरने पर बैठे इन किसानों और उनका नेतृत्व कर रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह का कहना है कि वह लोग अपनी मांग पूरी होने तक यहां बैठे रहेंगे। उम्मीद पूरी होगी या नहीं यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन यह बात सच है कि इस सीजन (अक्तूबर, 2012 से सितंबर, 2013) में बेहतर फसल के बावजूद तमाम दिक्कतों से जूझ रहे गन्ना किसान अपने पक्ष में सरकार को झुकाने के लिए इस धरने पर बैठे हैं। वीएम सिंह कहते हैं कि गन्ना किसानों का यह धरना 26 फरवरी को शुरू हुआ था। मकसद है 2009-10 के सीजन में एक सहकारी समिति के सभी किसानों को पूरे सीजन के लिए एक समान मूल्य और 2011-12 में देरी से हुए भुगतान पर ब्याज देने की मांग। जो शुगरकेन कंट्रोल आर्डर और यूपी शुगरकेन सप्लाई एंड परचेज एक्ट के तहत किसानों को मिलना चाहिए। इसके लिए न्यायालय आदेश जारी कर चुका है। मगर राज्य सरकार का जिम्मा होने के बावजूद वह इसे पूरा नहीं कर रही है। साथ ही चालू पेराई सीजन का बकाया गन्ना मूल्य भुगतान भी 4000 करोड़ रुपये को पार कर गया है। �यह धरना मेरठ कमीश्नरी के पास उसी पार्क में चल रहा है, जहां 1988 में भारतीय किसान यूनियन का पहला सबसे बड़ा पड़ाव शुरू हुआ था। उसका नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत कर रहे थे। उस ऐतिहासिक धरने ने यूनियन को राष्ट्रीय फलक पर ला खड़ा किया था। न तो यह धरना उतना बड़ा है और न ही इसका नेतृत्व कर रहे वीएम सिंह, महेंद्र सिंह टिकैत हैं। यही वजह है कि 14वें दिन तक दिल्ली और लखनऊ की सरकार तो बहुत दूर गन्ना आयुक्त ने भी किसानों के बीच आने की जरूरत नहीं समझी है। संभल से आए राजबीर सिंह कहते हैं कि न तो हमारा मुद्दा कम गंभीर है और न ही यहां आने वाले किसानों का भरोसा कमजोर है। हम अपना हक लेकर ही यहां से उठेंगे। शामली के मुंडेट से आए राजबीर सिंह कहते हैं कि धरने में ट्रैक्टर ट्रालियों पर आये यह किसान जेपी नगर, हापुड़, मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और सहारनपुर जिलों से आए हैं। पास के किसान रात में अपने घरों को चले जाते है। कुछ पीलीभीत, संभल, शाहजहांपुर, पलिया, सीतापुर, खीरी, बरेली और बदायूं से भी आए हैं और दिन रात यहीं रुकते हैं। यूनियन के 1988 के 27 दिन चले धरने और इस समय चल रहे धरने में कुछ समानताएं भी हैं। मसलन पास के गांवों के किसान यहां हर रोज खाना लेकर आते हैं, दूध लेकर आते हैं या फल लेकर आते हैं। यहां खाना लाने वाले ददारा गांव के कालूराम मटर वाले और अनुज का कहना है कि किसानों के ऊपर खाने पीने की व्यवस्था का कोई दबाव नहीं है। हम इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। यही बात जैनपुर से आये हरविंद्र सिंह कहते हैं। दोनों धरनों के बीच कई असमानताएं भी हैं। पिछले धरने में शहर के लोगों को कई दिक्कतें हुई थी, इसकी वजह बड़ी संख्या थी। नगलामल से आए ठाकुर दिनेश चौहान इस पर कहते हैं कि इस बार संख्या कम है, लेकिन इतनी भी कम नहीं कि रास्ता जाम न हो। ऐसा हो नहीं रहा है क्योंकि हम शांति के साथ आंदोलन कर रहे हैं। पहले धरने में मांगों का चार्टर बहुत बड़ा था, लेकिन इस बार मुद्दा स्पष्ट और छोटा है। जेपी नगर के मंडी धनौरा से आये जयचंद गुर्जर कहते हैं कि ऐसे में क्या राज्य सरकार को किसानों की नहीं सुननी चाहिए। बिजनौर से आए शकील कहते हैं कि आने वाले दिनों में किसानों की संख्या बढ़ेगी। वहीं घासेपुर के रणपाल सिंह का कहना है कि कुछ संगठन और राजनीतिक दल किसानों को आने से रोक रहे हैं। मांग पूरी होने तक यहां डटे रहेंगे ‘हम अपनी मांग पूरी होने तक यहां डटे रहेंगे। 2009-10 के सीजन में एक सहकारी समिति के सभी किसानों को पूरे सीजन के लिए एक समान मूल्य और 2011-12 में देरी से हुए भुगतान पर ब्याज देने की मांग ही हमारा मकसद है। शुगरकेन कंट्रोल आर्डर और यूपी शुगरकेन सप्लाई एंड परचेज एक्ट के तहत किसानों को यह हक मिलना चाहिए।’ --वीएम सिंह, संयोजक, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन