चीनी आयात रोकने में देर हुई तो गन्ना किसानोंऔर चीनी उद्योग की मुश्किलें भले बढ़ जाएं, लेकिन उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है। आयातित सस्ती चीनी से घरेलू बाजार में कीमतें तेजी से नीचे जा सकती हैं। चालू पेराई सत्र [अक्टूबर-सितंबर] में अब तक कुल आठ लाख टन चीनी का आयात हो चुका है। इससे चीनी उद्योग की धड़कने तेज हो गई हैं। मगर महंगाई से घबराई सरकार ने इस दिशा में फिलहाल कुछ भी करने से साफ मना कर दिया है।
चीनी उद्योग का मानना है कि ऐसी हालत में गन्ना किसानों का भुगतान रुक सकता है, लेकिन सरकार तत्काल कोई कदम उठाने से बच रही है। सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों खाद्य सचिव को बुलाकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मसले को समझने का प्रयास किया। वित्तमंत्री ने काबू से बाहर होती महंगाई पर चिंता जताते हुए कहा कि वर्तमान में चीनी कोई खास मसला नहीं है। कीमतों को घटाने के लिए सरकार हर संभव कदम उठाने को तैयार है।
वित्त मंत्री चिदंबरम के इस रुख से चीनी उद्योग संगठन सकते में हैं। वर्तमान में चीनी आयात पर 10 फीसद का शुल्क लगता है। वहीं, विश्व बाजार में चीनी की कीमत 150 डॉलर लुढ़ककर 500 डॉलर प्रति टन तक आ गई है। ब्राजील में पर्याप्त उत्पादन के मद्देनजर चीनी मूल्य में और गिरावट के आसार हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन [इस्मा] ने पिछले दिनों वित्त मंत्री चिदंबरम, कृषि मंत्री शरद पवार और खाद्य मंत्री के वी थॉमस से मुलाकात कर चीनी आयात पर 60 फीसद शुल्क लगाने का आग्रह किया था। पिछले सप्ताह तक कुल आठ लाख टन चीनी का आयात हो चुका है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव चीनी के घरेलू बाजार पर भी पड़ना शुरू हो गया है।
पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी चीनी का मूल्य भारत के मुकाबले पांच से छह रुपये प्रति किलो कम है। इस्मा ने आशंका जताई है कि सड़क मार्ग से वाघा बॉर्डर होकर चीनी की खेप यहां पहुंच सकती है। सूत्रों के अनुसार, पहले सरकार चालू सत्र में गन्ना पेराई, चीनी उत्पादन, घरेलू खपत और कैरीओवर स्टॉक का आकलन करेगी। इसके बाद आयात अथवा निर्यात पर रोक या नियंत्रण लागू करने संबंधी अपने फैसले की घोषणा करेगी।