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अगले साल चीनी उत्पादन में सवाया उछाल
Date: 12 Jul 2017
Source: Business Standard
Reporter: Rajesh Bhayani
News ID: 18574
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भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने आज अनुमान जारी करते हुए कहा कि अक्टूबर से शुरू होने वाले चीनी सीजन 2017-18 में उत्पादन 251 लाख टन रहेगा। यह चालू चीनी वर्ष के उत्पादन 203 लाख टन से करीब  25 फीसदी अधिक है। वर्ष 2017-18 में कुल उत्पादन में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश सबसे  बड़ा चीनी उत्पादक राज्य रहने के आसार हैं। 
 
इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'इस्मा का अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में 99.5 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। महाराष्ट्र और कर्नाटक के भी पटरी पर लौटने का अनुमान है। महाराष्ट्र में उत्पादन 74 लाख टन अनुमानित है।' जून के अंत में चीनी का स्टॉक करीब 1 करोड़ टन अनुमानित था और इस्मा के शुरुआती अनुमाान दर्शाते हैं कि जून में खरीद औसत से कम रही। उद्योग का अनुमान है कि सीजन के अंत में बचा हुआ स्टॉक 35 लाख से 40 लाख टन के बीच रहेगा। 
 
इस बीच सोमवार को सरकार ने अधिसूचना जारी कर सभी तरह की चीनी यानी रिफाइंड और कच्ची चीनी पर आयात शुल्क 40 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया। पिछले एक महीने के दौरान चीनी की कीमतों में भारी गिरावट के कारण यह कदम उठाया गया है। चेन्नई और कोलकाता जैसे कुछ बंदरगाहों पर 40 फीसदी आयात शुल्क पर भी आयात करना फायदे का सौदा है, लेकिन शुल्क में बढ़ोतरी की आशंका के चलते आयातकों ने आयात अनुबंध नहीं किए हैं। अब भी चीनी की कीमतें काफी हद तक सरकार के नियंत्रण में हैं, इसलिए देश में चीनी आयात पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा आयात शुल्क में बढ़ोतरी किए जाने के आसार थे। 
 
चीनी सीजन 2017-18 (अक्टूबर से सितंबर) में चीनी के अच्छे उत्पादन के अनुमानों को ध्यान में रखते हुए चीनी मिलें पिछले कुछ महीनों से अपना स्टॉक कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा बिक्री कर रही हैं। इससे खुले बाजार में कीमतें नियंत्रित बनी हुई हैं। वहीं 5 लाख टन कच्ची चीनी के शुल्क मुफ्त आयात के फैसले से मांग-आपूर्ति के संतुलन को बनाए रखने में मदद मिली है। 
 
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें मार्च से गिर रही हैं और ये अब तक करीब 30 फीसदी लुढ़ककर 13.5 सेंट प्रति पाउंड पर आ गई हैं। वैश्विक स्तर पर चीनी के दाम घटने की वजह ब्राजील में बेहतर उत्पादन होना है। वहीं ब्राजील की मुद्रा में गिरावट से उस देश से निर्यात करना ज्यादा फायदेमंद बनता जा रहा है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार से भारतीय चीनी की मांग नहीं आ रही है। 
 
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'शुल्क में बढ़ोतरी अच्छा कदम है। इससे आयात की वजह से घरेलू कीमतों में गिरावट नहीं आएगी। इससे मिलों को किसानों का बकाया चुकाने में मदद मिलेगी। सरकार गन्ना किसानों के शून्य बकाये की उम्मीद कर सकती है।' पिछले कुछ सप्ताह के दौरान चीनी की कीमतें थोक मंडियों में बढ़ी हैं। कारोबारी अधिकारी ने कहा, 'जून तक चीनी मिलें चीनी उपकर के रूप में प्रति टन चीनी पर 1,270 रुपये चुका रही थीं, जिसे जुलाई से समाप्त कर दिया गया है क्योंकि चीनी पर 5 फीसदी जीएसटी लागू कर दिया गया है। हालांकि जून में कारोबारी अपने पुराने स्टॉक की तेजी से बिक्री कर रहे थे क्योंकि 30 जून के बाद बचने वाले स्टॉक पर उन्हें चीनी उपकर के लिए इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा।' 
 
इसके नतीजतन जुलाई की शुरुआत में चीनी आपूर्ति शृंखला लगभग खाली थी और उस समय कीमतों में मामूली बढ़ोतरी हुई थी। ये कीमतें आने वाले दिनों में स्थिर हो सकती हैं। हालांकि उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि जून में औसत से भी कम चीनी का उठाव हुआ है। इस्मा ने सरकार को यह साफ करने के लिए पत्र लिखा है कि गन्ने पर जीएसटी लगेगा या नहीं। अगर गन्ने पर 5 फीसदी जीएसटी लगा तो इससे मिलों की काफी पूंजी फंस जाएगी। हालांकि उन्हें गन्ने पर चुकाया गया जीएसटी इनपुट क्रेडिट के रूप में मिल जाएगा। मुंबई थोक बाजार में चीनी के दाम आज 36 रुपये प्रति किलोग्राम बोले गए, जो जून के मुकाबले 1 रुपये अधिक हैं।
 
  

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