नई दिल्ली: गन्ना मूल्य बढ़ने और घरेलू बाजार में चीनी की कीमत कम होने से उत्तर प्रदेश की मिलें पहले से ही भारी सांसत में हैं। चीनी आयात की खुली छूट ने मिलों की मुश्किलें और बढ़ा दी है। इससे जहां चीनी मिलें घाटे की ओर बढ़ेंगी, वहीं गन्ना भुगतान रुक जाएगा। यह स्थिति गन्ना किसानों की मुश्किलों का भी सबब बन जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना के राज्य समर्थित मूल्य में 40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। इससे चीनी उत्पादन की लागत प्रति किलो 37.50 से 38 रुपये हो जाएगी है। इसके मुकाबले जिंस बाजार में चीनी का मूल्य 32.50 रुपये प्रति किलो है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन [इस्मा] ने वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और खाद्य मंत्री केवी थॉमस को पत्र लिखकर उत्पादन लागत और बाजार के हालात के साथ मिलों की वित्तीय स्थिति का ब्योरा दिया है। इस्मा ने आशंका जताई है कि पांच रुपये प्रति किलो के घाटे के चलते अकेले उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को 4000 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। मिलों को होने वाले घाटे के चलते गन्ना किसानों का भुगतान रुक सकता है। चालू पेराई सीजन में राज्य में कुल 79 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है।
आने वाले दिनों में घरेलू बाजार में दाम में और गिरावट के आसार हैं। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार में चीनी की भारी उपलब्धता के चलते कीमतें घटी हुई हैं। लिहाजा 10 फीसद आयात शुल्क के बावजूद इसका आयात सस्ता पड़ रहा है। यही वजह है कि अब तक सात लाख टन कच्ची चीनी का आयात हो चुका है। इस्मा के मुताबिक हल्दिया और कांडला स्थित चीनी रिफाइनरियों में उत्पादन जारी है। चीनी आयात जारी रहने की दशा में जहां मिलों का घाटा बढ़ेगा, वहीं किसानों का बकाया बढ़ेगा।